मन के पंख नहीं होते पर
>> Friday, July 25, 2008
फिर भी मन उड़ जाता है
व्याकुल पंखों को फैलाकर
नील गगन में जाता है
कभी दिखाता सुन्दर सपने
उर उम्मीद जगाता है
घोर निशा के तिमिरांचल में
सूर्य किरण बिखराता है ।
असफ़लता की घोर निराशा
जीवन में जब आती है
विगत सुःखों की झिलमिल झाँकी
आँखों में तिर जाती है
देखे थे जो सुन्दर सपने
उनकी याद सताती है।
चिर वियोग की तीव्र वेदना
आँखों में तिर जाती है
यह पागल सा हो मतवाला
तृष्णा- जाल बिछाता है
अपने पंखों संग बाँधकर
दूर बहुत ले जाता है
देख नयन का सुन्दर उत्सव
हृदय- हर्षित हो जाता है
तभी अचानक क्रूर सत्य भी
हँसी छीन ले जाता है
कभी सोचती त्वरित गति से
पिंजर एक बनाउँ मैं
चंचल गति को इसकी रोकूँ
अपना दास बनाऊँ मैं
किन्तु हृदय से ध्वनि ये आती
मन को लाड़- लड़ाऊँ मैं
भूल सत्य को इसके संग ही
उन्मत्त दौड़ लगाऊँ मैं
14 comments:
आपकी कविताएं भी घोर निशा के तिमिरांचल में सूर्य किरण बिखरानेवाली होती हैं।
निराशा से लड़ने की प्रेरणा तो देती ही है ये कविता पर इसके साथ-साथ मन पखेरू की आजादी का और इस आजादी के साथ जुड़ने का सुखद अहसास भी करवाती है.
दिल को छू लेने वाली बेहद ही सुंदर और प्यारी रचना.
बहुत ही सुंदर..
उन्मत्त दौड़ लगाऊँ मैं
कितनी सुंदर पंक्ति है ये है.. अपने आप में बहुत कुछ समेटे..
मन के पंख नहीं होते पर
फिर भी मन उड़ जाता है
बहुत सही ....
अच्छी है ....
वाह शोभा जी बहुत अच्छे ढंग से मन को परिभाषित किया हे आपने बधाई हो
असफ़लता की घोर निराशा
जीवन में जब आती है
विगत सुःखों की झिलमिल झाँकी
आँखों में तिर जाती है
वाह कया बात हे, धन्यवाद
behad aashawaadi kavita likhi hai aapne shobha ji bahut pasand aayi yah
कभी सोचती त्वरित गति से
पिंजर एक बनाउँ मैं
चंचल गति को इसकी रोकूँ
अपना दास बनाऊँ मैं
किन्तु हृदय से ध्वनि ये आती
मन को लाड़- लड़ाऊँ मैं
भूल सत्य को इसके संग ही
उन्मत्त दौड़ लगाऊँ मैं
बहुत सुंदर कविता......कभी ऐसा ही कुछ लिखा था ......
बाँध के रखो इन ख्यालो को
कम्बखत आसमान तक उडान भरते है
शोभा जी
कभी दिखाता सुन्दर सपने
उर उम्मीद जगाता है
घोर निशा के तिमिरांचल में
सूर्य किरण बिखराता है ।
वाह...बहुत सावधानी से शब्दों का चयन किया है आपने और "मन" पर ये बेजोड़ रचना लिखी है. शब्द शब्द मन के भाव और प्रकृति को दर्शाता है...इस विलक्षण रचना के लिए आप को साधुवाद....
नीरज
मन को छूती सुंदर कविता -अतीत हमेशा बेहतर होता है .......
sunder kavita sunder bhaav..pasand aayee...
कभी सोचती त्वरित गति से
पिंजर एक बनाउँ मैं
चंचल गति को इसकी रोकूँ
अपना दास बनाऊँ मैं
Shobhaji, Mann ki chanchal gati ko rok pana asaan hi nahi, na-mumkin hi hai, chahe aap koi pinjda bana kar use us main kaid kar ke dekh lijiye, wah hamesa se hi azad raha hai aur azad hi rahega, use aap apna dass nahi bana sakte....
Mann ke uper ek ati sunder rachna hai yah.
मुझे दुःख है की आपको काफी दिन से पढ़ नहीं पाया !अतः इतना सुंदर गीत से वंचित रहा...
"मन के पंख नहीं होते पर
फिर भी मन उड़ जाता है
व्याकुल पंखों को फैलाकर
नील गगन में जाता है...."
इस कविता में आपने बेहतरीन शब्द्चित्रण दिया है !
बड़ी गहरी यादें... लगता है बोल पड़ेंगी ! आपकी इस तन्मयता को प्रणाम !
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