मन का तहखाना
कैद है जिसमें
असंख्य रिश्ते--
जिनको आज तक
नाम नहीं दे पाई
किन्तु---आज भी-
-हर रिश्ते से बढ़कर
हर कदम पर
हर पल
बहुत करीब रहते हैं
अकेलेपन में
उनकी परछाई
सदा आस -पास
मँडराती रहती है
अदृश्य बाँहें-
सदा संरक्षण देती
तथा प्यार से
थपथपाती हैं
कभी-कभी अचानक
अतीत प्रत्यक्ष होकर
आसक्ति जगाता है
बीते दिनों को
फ़िर से बुलाता है
प्रेमांगन में-
भीनी सी खुशबू
तीव्रता से आती है
और दूर ले जाती है
अलभ्य को ---
पाने की कामना
बलवती हो जाती है
और --दिल के किसी कोने में
एक टीस सी जग जाती है ।
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10 comments:
बहुत खूबसूरत भाव भीनी रचना....भीनी सी खुशबू लिए रिश्ते जीवन-बगिया को महका देते हैं.. टीस क्यों ..?
प्यार भी टीस भी दोनों रंगों को खूब अच्छे से लिखा है आपने अपनी इस रचना में शोभा जी कुछ मीठी कुछ कहती ......
अकेलेपन में
उनकी परछाई
सदा आस -पास
मँडराती रहती है
अदृश्य बाँहें-
सदा संरक्षण देती
तथा प्यार से
थपथपाती हैं
bahut khoobsurat.....sab kuch kah diya aapne kam shabdo me...
अकेलेपन में उनकी परछाई.............
अच्छा लिखा है
बहुत बेहतरीन रचना है।अच्छी लगी।
अलभ्य को ---
पाने की कामना
बलवती हो जाती है
बहुत बढ़िया..भावपूर्ण! बधाई.
अलभ्य को पा लेना प्रायः मोहभंग का कारण भी बनता है .इसकी जिजीविषा बनी रहे तभी बेहतर -लक्ष्य नहीं इसकी साधना का आनंद भी कुछ कम आह्लादकारी नही .
कया भाव हे...
अकेलेपन में
उनकी परछाई
सदा आस -पास
मँडराती रहती है
अदृश्य बाँहें-
सदा संरक्षण देती
तथा प्यार से
थपथपाती हैं
बहुत बहुत धन्यवाद
हर संवेदन शील दिल आप की टीस को महसूस कर सकता है...बहुत सुंदर शब्दों में लिखी भावपूर्ण रचना...बधाई
नीरज
कभी-कभी अचानक
अतीत प्रत्यक्ष होकर
आसक्ति जगाता है
बीते दिनों को
फ़िर से बुलाता है
प्रेमांगन में-
भीनी सी खुशबू
तीव्रता से आती है
और दूर ले जाती है
Yah ATEET bhi ek bahot buri bala hai. Beete dinon ko koi bhula bhi nahi pata aur use bula bhi nahi paata koi. Aur isi liye -
अलभ्य को ---
पाने की कामना
बलवती हो जाती है
और --दिल के किसी कोने में
एक टीस सी जग जाती है ।
kyon ki Ateet ko pana bhi alabhya hi hai aur usi alabhya ko paane ki kaamna puri na hone per dil ke kisi kone mein EK TEES SI JAGATI HAI!!!!!!!!!
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