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प्यास

>> Friday, August 31, 2007


प्यास
भँवरे को कलियों के खिलने की प्यास
कलियों को सूरज की किरणों की प्यास
सूरज को चाहें चाँद की किरणें
चन्दाके आने की सन्ध्या को आस
सन्ध्या को माँगा है तपती जमीं ने
किसने बुझाई है किसकी ये आस ?
गीतों ने चाहा है खुशियों का राग
खुशियों को अपनो से मिलने की आस
अपने भी जाएँ जो आँखों से दूर
मिलने की रहती है बेबस सी आस
प्यासी ज़मीं और प्यासा गगन है
प्यासी नदी और प्यासी पवन है
नहीं कोई हो पाता जीवन में पूरा
तमन्नाएँ कर देती सबको अधूरा
अतृप्ति मिटाती है ओठों से हास
सभी हैं अधूरे सभी को है प्यास
मगर जिनको मिलता है तेरा सहारा
उसी को मिला है यहाँ पर किनारा
ये भोगों की दुनिया उसे ना रूलाती
जगी जिसकी आँखों में ईश्वर की प्यास
चलो आज करलो जहाँ से किनारा
लगा लो लगन और पा लो किनारा
वो सत्-चित् आनन्द सबका सहारा
वहीं जाओ फिर पाओगे तुम किनारा
अतृप्ति रहेगी ना भोगों की प्यास
मिटा देगा वो तेरी जन्मों की प्यास

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संवेदना

>> Thursday, August 30, 2007


स्वतंत्र भारत के नागरिकों
मेरी संवेदना तुम सबके प्रति है ।
क्योंकि ------
तुम केवल बाहर से स्वतंत्र हो
भीतर से तो आज भी
गुलामी के उसी बन्धन में
जी रहे हो --
सोचो तो -इतने उत्सव ,
इतने आयोजन -
क्यों कर रहे हो ?
गुलामी ही तुम्हारी नियती है ।
इसीलिए -
मेरी संवेदना तुम्हारे प्रति है ।
तुम गाँधी, सुभाष और
तिलक की बात करते हो ?
अपने अन्तर से पूछो
क्या उनका आचरण धरते हो
देश की खातिर क्या
कभी कुछ किया है ?
फिर इन बलिदानियों का
नाम क्यों लिया है ?
ये तो आडम्बर की
घोर परिणिति है ।
इसीलिए-
मेरी संवेदना तुम सब के प्रति है ।
आज़ादी के लिए ही
उन्होने जानें गँवाई
किन्तु तुमने आज़ादी
इतने सस्ते में लुटाई ?
स्वार्थ संकीर्णता में फँस कर
सारी ज़िन्दगी बिताई ?
कभी धन,कभी प्रतिष्ठा
कभी पद, कभी स्वार्थ
के गुलाम बने रहे ।
भोगों के पीछे भागने की तो
आज हो चुकी अति है ।
इसीलिए ---
मेरी संवेदना तुम सबके प्रति है ।
देश प्रेम और राष्ट्रीय आस्मिता की
कोरी बाते मत करो ।
ये सब अर्थ हीन हैं ।
यदि सत्य होती तो-
भगत- सिंह और सुभाष
देश छोड़ विदेश जाने का
ख्वाब क्यों सजाते ?
सुख-आराम की लालसा में
क्यों इतने तिलमिलाते ?
देश के कर्णाधार क्यों
देश को ही खा जाते ?
साम्प्रदायिकता का काला
ज़हर क्यों फैलाते ?
क्यों सबकी ऐसी मति है ?
इसीलिए--
मेरी संवेदना -
तुम सब के प्रति है ।
किसी दिन तुम सच में
आज़ाद हो जाओ ।
अपना देश,अपना घर
अपना आँगन सजाओ ।
भारत की सुन्दर छवि बनाओ
वन्दे मातरम् की सच्ची
भावना ले आओ ।
भारत से स्वार्थ को
दूर भगाओ ।
तन-मन और मन से
समर्पित हो जाओ ।
प्रेम की गंगा में
डुबकी लगाओ ।
रोती हुई आँखों को
हास दे जाओ ।
फिर ध्वज फहराने की
पूर्ण अनुमति है ।
वरना---
मेरी संवेदना
तुम सबके प्रति है ।
इन सब के प्रति है ।

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मेरी प्यारी हिन्दी

>> Thursday, August 9, 2007

मेरी प्यारी हिन्दी
मेरे हिन्द की भाषा
मेरे राष्ट्र का गौरव
सबका स्वाभिमान
इस देश की पूँजी
भावों का तुझमें विस्तार
दिल में बसा तेरे प्यार
नित्य नूतन शब्दों को
जन्म देने वाली
हमार भावों को
व्यक्त करने वाली
अनेक विदेशी शब्दों को
आँचल में बसाती ।
अपनी ममता तू
सब पर लुटाती
सरल-सरस शब्दों की
झंकार
तुझमें बसा है बस
प्यार ही प्यार

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बादल

>> Saturday, August 4, 2007


स्मृति पटल पर कुछ बादल घिर आए हैं ।
उमड़-घुमड़ कर मधुर शोर ये मचाए है।
चेतना की बिजली भी बार-बार चमकती है।
दिल के कोने में एक फाँस सी चुभ जाती है ।
आँखों में अश्रु-जल की तरल बूँदें तैर जाती हैं ।
ऐसे में तम्हारी प्रिय याद बहुत आती है ।

जैसे ही हवा मेरा द्वार खट्खटाती है
तुम्हारी उँगलियों की सर-सराहट हो जाती है।
घर के हर कोने से तब खुशबू तेरी आती है।
महकती हुई साँसों में तेज़ी सी आ जाती है ।
लगता है कोई छवि आस-पास ही मँडराती है ।
वाणी बार-बार प्रेम-भरा गीत गाती है ।
तेरी याद बहुत आती है---------------

जब भी कहीं बिछड़ा कोई दोस्त कोई मिल जाता है ।
आँगन में मेरे भी एक फूल सा खिल जाता है ।
आँखों में अचानक से कुछ स्वप्न से जग जाते हैं ।
कितने ही अरमान मेरे दिल में मचल जाते हैं ।
फिर से कोई पगली तमन्ना मचल जाती है ।
आँखों के झरोखों से तसवीर निकल आती है ।
तेरी याद बहुत आती है---------------

कैसी ये अनोखी सी इस दिल की कहानी है ।
वो भूल गया मुझको दिल ने नहीं मानी है ।
ये फिर से बुलाता है उस गुजरे हुए कल को
जो दूर है जा बैठा उस भूले से प्रीतम को
फ़िर नेह की बाती के उजले से सवेरे को
जिसके बिना जीवन में अँधियारी सी छाती है
एक प्यास जगाती है तेरी याद क्यों आती है

शोभा महेन्द्रू

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