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विभिन्नता में एकता

>> Thursday, July 17, 2008



मेरे देश की विशेषता

हमेशा यही पाठ पढ़ा-

और यही पढ़ाया

किन्तु प्रत्यक्ष में

एकता का कहीं

दर्शन ना पाया


कभी धर्म के नाम पर

खुले आम घर जले


फिर भी हमने……

.धर्म निरपेक्षिता की

डींगे हाँकी….


जाति के आधार पर आरक्षण

युवा शक्ति का विद्रोह

हड़तालें,तोड़-फोड़

आत्मदाह की घटनाएँ

हमारा कलेजा चीर गई

फिर भी हमने

समानता की दुहाई दी


प्रान्तीयता के आधार पर


राष्ट्रीयता के हृदय पर

एक बड़ा आघात

और सारा देश चुप….

.पद का सही उम्मीदवार

अपमान सह गया

और राष्ट्र मूक रह गया


और आज……

प्रान्तीयता का राक्षस

आतंक मचा रहा है

चीखों और पुकारों से

दिल घबरा रहा है

नफरत की आँधी

सब कुछ उड़ा रही है


अपनी सन्तान के

कुकृत्यों पर

उसका अंग-अंग

पीड़ा से कराह रहा है

ना जाने कौन

ये जहर फैला रहा है

11 comments:

Anonymous July 17, 2008 at 6:10 PM  

Shobhaji, aapne apni kavita me sahi mudda chheda hai. sahi likha hai. bhut badhiya.

डॉ .अनुराग July 17, 2008 at 6:26 PM  

jai hind....

रंजू भाटिया July 17, 2008 at 6:44 PM  

१५ अगस्त का जोश छा गया आप पर लगता है :) अच्छा लिखा है

रंजू भाटिया July 17, 2008 at 6:44 PM  

१५ अगस्त का जोश छा गया आप पर लगता है :) अच्छा लिखा है

Udan Tashtari July 18, 2008 at 12:34 AM  

बहुत बढिया.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 18, 2008 at 1:17 AM  

Mera Bharat Mahan hai -

vipinkizindagi July 19, 2008 at 6:50 PM  

अच्छी रचना है

Smart Indian July 20, 2008 at 5:45 PM  

एक बार फ़िर आपकी सुलझी हुई कलम से एक और दुखद परन्तु सत्य कथन. हमारे पूर्वजों ने बहुत प्रयत्न से इस विशाल भारत भूमि में एकता का विचार देखा और अपनाया था. क्या आज हम उसे बचा भी नहीं सकते हैं?

Rajesh July 24, 2008 at 2:15 PM  

Dharma, Sampradayikta, Prantiyata aur na jane kitne hi hisson mein hai banta hai mera yah Desh. Is duniya mein sab se jyada cultured mana jaane wale desh ki yah haalat hum hi ne ya phir hamare in Netaon ne ki hai aur dukh is baat ka hai ki kisi ko is mein sharm nahi. Isi liye kahte hai - 100 mein se 99 beimaan, phir bhi MERA BHARAT MAHAAN!!!!!!!! JAY HIND.

आशीष "अंशुमाली" August 1, 2008 at 6:20 PM  

उपाय करना कौन चाह रहा है आखिर..

Shambhu Choudhary August 8, 2008 at 10:09 PM  

अपनी सन्तान के
कुकृत्यों पर
उसका अंग-अंग
पीड़ा से कराह रहा है
ना जाने कौन
ये जहर फैला रहा है

आदरणीय शोभा जी,
नमस्कार!
आपकी टिप्पणी देखी। आप कथा-व्यथा के लिये एक नई कविता अपने पूर्ण परिचय के साथ कल तक मुझे मेल द्वारा जरूर से भेंजे। मुझे आपकी कविता देकर खुशी होगी। ऊपर की चार पंक्तियों ने आपका परिचय दे दिया है। शुभकामनाएं -शम्भु चौधरी

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