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मेरा परिचय

>> Saturday, March 21, 2009

मैं तुम पर आश्रित नहीं
स्वयं सिद्धा हूँ

तुम्हारे स्नेह को पाकर
ना जाने क्यों
कमजोर हो जाती हूँ
स्वयं को बहुत असहाय पाती हूँ

शायद इसलिए
तुम्हारे हर स्पर्ष में
प्रेम की अनुभूति होती है

उस प्रेम को पाकर
मैं मालामाल हो जाती हूँ
और अपनी उस दौलत पर
फूली नहीं समाती हूँ

अपनी इच्छा से
अपने को पराश्रित
और बंदी बना लेती हूँ

किन्तु तुम्हारा अहंकार
बढ़ते ही
मेरी जंजीरें स्वयं
टूटने लगती हैं

मेरी खोई हुई शक्ति
पुनः लौट आती है
और मैं आत्म विश्वास से भर
हुँकारने लगती हूँ

मेरी कोमलता
मेरी दुर्बलता नहीं
मेरा श्रृंगार है

यह तो तुम्हें
सम्मान देने का
मेरा अंदाज़ है

वरना नारी
कब किसी की मोहताज़ है ?

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होली के रंग

>> Tuesday, March 10, 2009


होली के रंग
और तुम्हारी याद
दोनो साथ-साथ
आ गए….
खिले हुए फूल
और…
बरसते हुए रंग
कसक सी….
जगा गए
आती है जब भी
टेसू की गन्ध
दिल की कली
मुरझा सी जाती है
रंगों में डूब जाने की
चाहत….
बलवती हो जाती है
चेतना बावली होकर
पुकार लगाती है
और शून्य में टकराकर
पगली सी लौट आती है
फाग में झूमती
मस्तों की टोली में
बेबाक….
तुम्हें खोजने लगती हूँ
और आँखें….
अकारण ही बरस जाती हैं
होली की गुजिया
और गुलाल के रंग
बहुत फीके से लगते हैं
कानों में तुम्हारी हँसी
आज भी गूँजती है
आँखें…..
तुम्हे देख नहीं पाती
पर आस है कि
मरती ही नहीं
कानों में….
तुम्हारे आश्वासन
गूँजने लगते हैं
और…..
रंगों को हाथ में लिए
दौड़ पड़ती हूँ
दिमाग पर…
दिल की विजय
यकीन दिलाती है
तुम जरूर आओगे
और मुझे…..
फिर से
अपने रंग दे जाओगे

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केवल सबला हो

>> Sunday, March 8, 2009


नारी तुम....
केवल सबला हो
निमर्म प्रकृति के फन्दों में

झूलती कोई अर्गला हो ।

नारी तुम...
केवल सबला हो ।


विष देकर अमृत बरसाती

हाँ ढ़ाँप रही कैसी थाती ।
विषदन्त पुरूष की निष्ठुरता
करूणा के टुकड़े कर जाती
विस्मृति में खो जाती ऐसे
जैसे भूला सा पगला हो
नारी तुम....
केवल सबला हो


कब किसने तुमको माना है
कब दर्द तुम्हारा जाना है
किसने तुमको सहलाया है
बस आँसू से बहलाया है
जिसका भी जब भी वार चला
वह टूट पड़ा ज्यों बगुला हो ।
नारी तुम--
केवल सबला हो
तुम दया ना पा ठुकराई गई
पर फिर भी ना गुमराह हुई
इस स्नेह रहित निष्ठुर जग में
कब तुमसी करूणा-धार बही ?
जिसने तुमको ठुकराया था
उसके जीवन की मंगला हो ।
नारी तुम --
केवल सबला हो
कब तक यूँ ही जी पाओगी ?
आघातों को सह पाओगी ?
कब तक यूँ टूटी तारों से
जीवन की तार बजाओगी ?
कब तक सींचोगी बेलों क
उस पानी से जो गंदला हो ?
नारी तुम ---
केवल सबला हो
लो मेरे श्रद्धा सुमन तम्हीं
कुछ तो धीरज पा जाऊँ मैं
अपनी आँखों के आँसू को
इस मिस ही कहीं गिराऊँ मैं
तेरी इस कर्कष नियती पर
बरसूँ ऐसे ज्यों चपला हो ।
नारी तुम --
केवल सबला हो
मेरी इच्छा वह दिन आए
जब तू जग में आदर पाए ।
दुनिया के क्रूर आघातों से
तू जरा ना घायल हो पाए
तेरी शक्ति को देखे जो
तो विश्व प्रकंपित हो जाए ।
यह थोथा बल रखने वाला
नर स्वयं शिथिल-मन हो जाए ।
गूँजे जग में गुंजार यही-
गाने वाला नर अगला हो
नारी तुम....
केवल सबला हो ।
नारी तुम केवल सबला हो ।

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