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मेरे मन

>> Sunday, July 29, 2007


सावधान मन
सावधान मन
भावनाओं का वेग आ रहा है ।
इसकी लहरों में तीव्रता है ।
ये तुम्हें गंतव्य से दूर
ले जाकर पटक देंगीं ।
इसकी मधुर ध्वनि ,
सुकुमार छवि और
मनमोहक अदा न देख
ये तुझे सत्य से दूर
बहुत दूर ले जाएँगी ।
इस मदहोशी में
तू कब कहाँ
पहुँच जाएगा
कभी जान भी ना पाएगा ।
अगर कुछ देखना ही है
तो विनाश के दृश्य देख
जो इसके बाद आएँगे ।
जब तू आसक्ति के पाश में
कसमसाएगा ।
तेरी विवशता
कोई समझ भी
नहीं पाएगा ।
तू खुद ही
स्वयं को धिक्कारेगा ।
क्या उस दृश्य को
सहन कर पाएगा ?

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एक अहसास

>> Sunday, July 8, 2007


कितना सुखद अहसास है
कोई हर पल- हर घड़ी
मेरे साथ है ।
कभी हँसाता है,
कभी रूलाता है
और कभी ---
आनन्द के उस समुन्द्र में
धकेल देता है
जहाँ------
उअनुभूति की खुमारी है
बड़ी लाचारी है ।
मैं षोडषी बन
चहकने लगती हूँ ।
उसकी बातों में
बहकने लगती हूँ ।
अपनी इस दशा को
कब तक छिपाऊँ
और किसको अपना
हाल बताऊँ ?
अपनी उस अनुभूति के लिए
शब्द कहाँ से लाऊँ ?
किसी को क्या
और कैसे बताऊँ ?
ये तो अहसास है ।
जो कहा नहीं जा सकता
समझ सकते हो
तो समझ जाओ ।
नूर की इस बूँद को
मौन हो पी जाओ ।
मौन हो पी जाओ ।

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