मैं और मेरी परछाई
>> Tuesday, July 15, 2008
मैं और मेरी परछाई ।
जब भी मैं –
परिस्थितियों में
सहज होना चाहती हूँ -
मेरी परछाई
बहुत दूर भाग जाती है ।
ना जाने उसे कब और कैसे
अवसर मिल जाता है और
वह तुमसे मिल आती है ।
जब भी मैं काम में
मन लगाती हूँ -
वो कल्पना की
रंगीन चादर बिछाती है ।
तितली की तरह इधर-उधर
मँडराती है ।
जब मैं किसी मीटिंग में बैठ
गम्भीरता से सिर हिलाती हूँ-
वह शरारत से गुदगुदाती है ।
हाथ पकड़ कर बाहर ले आती है ।
जाने कैसे-कैसे बहाने बनाकर
अपनी बातों को सही ठहराती है ।
जब भी मैं जीवन को
सहज अपनाती हूँ --
वह विरोध कर देती है ।
मैं इसे कैसे समझाऊँ ?
जान नहीं पाती हूँ ।
घूर कर , डाँट कर
झीक कर रह जाती हूँ ।
तुम इस परछाई को
सच ना समझना ।
इसके साथ कोई ख्वाब
ना बुन ना ।
क्योकि ये केवल परछाई है
सच नहीं ।
कभी भी धोखा दे जायेगी
जब मेरी ही ना हुई तो
तुम्हारी क्या खा़क हो पाएगी ?
12 comments:
.....सचमुच किसी ने कहा भी है...."हर रोज हमें मिलना है,हर रोज बिछड़ना है...,मै रात की परछाई हूँ तू सुबह का चेहरा है..."
बहुत खूब परछाई तो परछाई है ...अच्छी लगी यह परिभाषा परछाई की
bhut badhiya. achhi rachana. badhai ho.
umesh ji ne sari bat kah di hai.aage sirf aapki tareef karna rah jata hai...so kar raha hun...
Bahut Badhiya. Badhai.
जो मैं हूँ वो मैं ही हूँ या जो है वो ये पर्छाईं है
असमंजस जो गहरा होता है सचमुच ही दुखदाई है
जिसको परछाई समझे, वो सच में तो अपना चेहरा है
ओढ़ा हुआ मुखौटा है, जो छवि दुनिया को दिखलाई है
शोभा जी,यह परछाई सच मे बडी वेबफ़ा हे,
जब मेरी ही ना हुई तो
तुम्हारी क्या खा़क हो पाएगी ?
शायद इस परछाई का नाम ही जिन्दगी तो नही ???
धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिये
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
आपने परछाई के साथ सुन्दरतम तालमेल बैठा लिया है ?
बहुत शानदार है आपकी कविता !
इस सशक्त भावाभिव्यक्ति ने किसी कवि की इन लाईनों की याद दिला दी -
छाया मत छूना मन ,होगा दुःख दूना मन ..
बहुत खूब ....
कितनी खामोश है?
कितनी तन्हा है?
कितनी अकेली है?
अंधेरे में मज़बूर भी है,
हर जगह मेरे साथ भी है,
ज़िन्दगी के हर किनारे से,
वो मेरी हमसफर भी है,
मगर फिर भी वो,
कितनी खामोश है?
कितनी तन्हा है?
कितनी अकेली है?
मेरी परछाई
Parchhanii to parchhanii hi hoti hai, wah kahan kisi ki hoti hai, isi liye to kse par-chhanii kaha gaya hai, parayi chhaya......
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