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पागल प्रेमी

>> Wednesday, June 9, 2010


देखो आकाश में

घना अँधेरा छाया है ।


लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।


इसके मन भावन रूप पर

धरती मोहित हो जाएगी ।

प्रेम की प्यासी

अपना आँचल फैलाएगी ।

और

अमृत की वर्षा में

आकंठ डूब जाएगी ।

ऑंखों में रंग और ओठों पे

मधुर गीतआया है ।


लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।


गर्मी की तपन

अब शान्त हो जाएगी ।

सूखी सी धरती पर

कलियाँ खिल जाएँगी ।

हर तरफ अब बस

हरियाली ही छाएगी ।

गर्मी से सबको ही

राहत मिल जाएगी ।

झूलों में बैठ कर

गीत याद आया है ।

लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।


धरती की प्रतीक्षा

रंग ले आई है ।

मदमदाती आँखों में

प्रेम छवि छाई है ।

अंग- अंग में यौवन की

मदिरा छलक आई है ।

नव अंकुरित सृष्टि ने

नयनों को लुभाया है ।


लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।


बादल और प्रेमी

आते और जाते हैं ।

संवेदनाओं के मधुर

फूल खिला जाते हैं ।

कभी यहाँ, कभी वहाँ

अलख जगाते हैं ।

नारी को केवल

सपने दे जाते हैं ।

प्रेम में मत पूछो

किसने क्या पाया है ।


लगता है कोई प्रेमी

बादल बन आया है ।

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