मेरे अनुभव को अपनी प्रतिक्रिया से सजाएँ

कुछ क्षणिकाएँ

>> Thursday, January 31, 2008


बिजली की परेशानी पर
जब सवाल हमने उठाया
उन्होने मुसकुरा कर
हमें ही दोषी बताया
बोले-------
यह परेशानी भी
तुम्हारी ही लाई है
सच-सच बताओ-
ये बिजली तुमने
कहाँ गिराई है ?
--------------------

तुम्हारी बातें भी अब
दिल तक पहुँच नहीं पाती हैं
बात शुरू होते ही--
बिजली चली जाती है--


प्रतिपल आती -जाती
बिजली से दुःखी हो
हमने बिजली दफ्तर में
गुहार लगाई
विद्युत अधिकारी ने
लाल-लाल आँखें दिखाई
अजीब हैं आप--
हम पर आरोप लगा रहे हैं
अरे हम तो आपका ही
खर्च बचा रहे हैं
इस मँहगाई में
बिजली हर समय आएगी
तो बिजली का बिल देखकर
आप पर------
बिजली नहीं गिर जाएगी ?



बिजली की किल्लत से वो
जरा नहीं घबराते हैं
परिवार को अपने
आस-पास ही पाते हैं
टी वी और कम्प्यूटर को
हँसकर मुँह चिढ़ाते हैं
क्योकिं –
जब भी श्रीमान जी
दफ्तर से आते हैं
बिजली को हरदम
गुल ही पाते हैं


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बिजली बिना ---

>> Sunday, January 27, 2008


दिल में जगमग हैं हज़ारों बिजलियाँ
लाख तुम बाहर की बिजली काट लो

हम तो रौशन हैं खुदा के नूर से
बिजली क्या है चीज़ जिसका नाम लो

छोड़ दो करना गिले शिकवे हुज़ूर
अब अँधेरों से मौहब्बत पाल लो

कब तलक चीखोगे औ चिल्लाओगे
होगा ना कुछ भी असर ये जान लो

बिजली है क्या चीज़ झूठी रौशनी
सच्चा साथी है अँधेरा जान लो

कब तलक देखोगे उसका रास्ता
उनका आना है नामुमकिन मान लो

आएगी कुछ पल को औ फिर जाएगी
बेवफा इसका चलन ये मान लो

देखी हैं कितनी ही तुमने दिक्कतें
एक बिजली की भी दिक्कत पाल लो

क्या शिकायत, किससे और कैसा गिला
रिश्ते में ‘हम सब हैं भाई’ मान लो

सब लगे हैं लोकहित के काम में
झूठ लगता है ना ये ? पर मान लो

देश अपना है, हैं अपनी दिक्कते
अब शुभी किसको यहाँ इल्ज़ाम दो

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लोकतंत्र

>> Saturday, January 26, 2008

लोकतंत्र
एक असफल
शासन प्रणाली
धूर्तों की क्रीड़ा
मासूमों की पीड़ा
पराजित जीवन मूल्य
विजित नैतिकता
दानवों का अट्टाहस
देवों का रूदन
नेता सूत्रधार
जनता कठपुतली
नित्य नवीन योजनाएँ
बहुत सी वर्जनाएँ
संसद में शोर
आतंक का जोर
आरोप-प्रत्यारोप
निष्कर्ष-----?
शून्य --
टूटते विश्वास
खंडित प्रतिमाएँ
धार्मिक संकीर्णताएँ
चहुँ दिशि आहें
ऊफ़! ये लोकतंत्र

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गणतंत्र-दिवस

>> Sunday, January 20, 2008


भारत के गणतंत्र की ५९वीं वर्षगाँठ पर सभी भारतीयों को बधाई । यह दिवस क्या आता है, स्मृतियों का सैलाब सा आजाता है। एक-एक कर सारी यादें स्मृति पटल पर छा जाती है । हृदय हर्ष से रोमांचित हो जाता है । अपना शासन, अपना कानून अपने नियम -उपनियम । अहा! कितना आनन्द दायी अनुभव रहा होगा ।
डाक्टर भीमराव अम्बेदकर के नेतृत्व में बनी कमेटी ने जी-जान लगाकर काम किया। भारतीय विचारधारा और भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखते हुए पुस्तक लिखी । जिसका मुख्य आधार व्यक्ति की स्वतंत्रता रही ।

भारत का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को अनेक अधिकार देता है । भारत को एक सर्व प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र घोषित किया गया। इसको धर्म-निरक्षेप राष्ट्र भी घोषित किया गया।
किन्तु वर्तमान में लोकतंत्र की ओर देखें तो हैरानी होती है। सामान्य जन के लिए उनके द्वारा और उनका कहने वाला संविधान आज जन मानस को क्या दे रहा है । आज हमारा जनतंत्र कुटिल नेताओं के हाथ का खिलौना बन गया है।
जन सामान्य के लिए

जन सामान्य के द्वारा
और जन सामान्य का
तंत्र है---
किन्तु आश्चर्य---
सर्वाधिक उपेक्षित
जन सामान्य ही है
हर बार चुनाव में
वही निशाना बनता है
कोई डराता है-
कोई फुसलाता है

कोई ललचाता है
पर--
सत्ता मिलते ही
अगूँठा दिखाता है
बेचारा जन सामान्य
मुँह ताकता रह जाता है
हर शासक उसी के लिए

योजनाएँ बनाता है
बड़ी-बड़ी कसमें खाता है
ये और बात है कि
लाभ भाई-भतीजा
ही पाता है
बेचारा जन सामान्य
सोचता ही रह जाता है
आख़िर कब तक वह
यूँ भ्रम में जिएगा?
सत्ता लोलुप
लालची लोगों का
शिकार होता रहेगा?
जिसके लिए यह तंत्र है
उसी को मिटाया जाता है
कुचला और सताया जाता है
हर बार उसे ही

शिकार बनाया जाता है
कभी उसे --
गोली लगती है
कभी रौंदा जाता है
कभी कुचला जाता है
किन्तु फिर भी
गर्व से मुसकुराता है
और हँसकर
गुनगुनाता है
यह लोकतंत्र है
मेरे लिए--
मेरे द्वारा-- और
मेरा तंत्र---
कभी तो कोई
चमत्कार हो जाए
और लोकतंत्र जन-जन का
तंत्र हो जाए
यह प्रश्न आज हर भारतीय के मन में उठ रहा है और उठना भी चाहिए ।
मैं मानती हूँ कि इसमें जनता की भूमिका भी महत्वपूर्ण है और होनी भी चाहिए । आज समय है कि हम सब अपने कर्तव्यों के प्रति सावधान हो जाएँ। कृतसंकल्प होकर लोकतंत्र को सफल बनाएँ। यह देश हम सबका है और इसकी उन्नति में हम सब को अपनी विशिष्ट भूमिका निभानी चाहिए । उठो मेरे देश के लोगों जागो । अधिकार और कर्तव्य दोनो साथ-साथ चलें तो अच्छा है । जय भारत




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लोक तंत्र

>> Saturday, January 12, 2008


मैं लोकतंत्र हूँ--
भारत का संविधान
मेरा ही अनुगमन करता है
क्योंकि--
मैं जनता के लिए
जनता के द्वारा
और जनता का तंत्र हूँ
फिर भी--
जन सामान्य यहाँ
कुचला जाता है
तोहमत मुझपर लगती है
मैं जन-जन को
अधिकार देता हूँ
राष्ट्र निर्माण का अधिकार
अपना प्रतिनिधि
चुनने का अधिकार
किन्तु देश की जनता
इससे उदासीन रहती है
मतदान के दिन
चैन से सोती है
देश में हो रहा चुनाव
छट्टी का दिन
बन जाता है
इसीलिए उसका
भरपूर आनन्द उठाता है
केवल कुछ लोग
मतदान को जाते हैं
पर साम्प्रदायिकता से
ऊपर नहीं उठ पाते हैं
कभी धर्म के नाम पर
कभी जाति के नाम पर
और कभी लालच में
मतदान कर आते हैं
इसलिए धूर्त लोग
इसका लाभ उठाते हैं
मनचाहा मतदान करवा
शासक बन जाते हैं
सीना छलनी कर जाते हैं
कभी-कभी सोचता हूँ
मुझे सफल बनाना
जन सामान्य का काम है
फिर --
मेरा नाम क्यों बदनाम है?
देश का हर नागरिक
अपनी ही चिन्ता में डूबा है
देश और देशभक्ति
सबके लिए अजूबा है
संविधान से लोग
उम्मीद तो लगाते हैं
पर देश के लिए
समय नहीं निकाल पाते हैं
मेरे ५८वेँ जन्म दिवस पर
एक उपहार दे जाओ
इस वर्ष मुझे सच- मुच
जनतंत्र बना जाओ
जन-जन का तंत्र
बना जाओ----

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आओ एक इतिहास बनाएँ

>> Monday, January 7, 2008


आओ एक इतिहास बनाएँ
वैर भाव से त्रस्त हृदयों को
शीतल चन्दन लेप लगाएँ

सदियों तक तड़पी मानवता
धर्म जाति की अग्नि में
मन्दिर-मस्ज़िद के झगड़ों से
छलनी हैं सबके सीने
आओ मिलकर कोशिश कर लें
सच्चा एक इन्सान बनाएँ
फिर शंकर को आज ले आएँ
सच्चा मानव धर्म सिखाएँ

पश्चिम ने पूरब को घेरा
जीत रही है भौतिकता
धन के पीछे भाग रहे हैं
धक्के खाती नैतिकता
आओ अपने बच्चों को फिर
पूरब का आदर्श दिखाएँ
विवेकानन्द को फिर ले आएँ
भारत की फिर शान बढ़ाएँ
उसको विश्व विजयी बनाएँ

देश प्रेम की झूठी चर्चा
संसद में नेता करते हैं
लूट देश को जेबें भरते
बड़ी-बड़ी ये बातें करते
आओ इनके षड़यंत्रों को
हम सब मिलकर विफल बनाएँ
भगत सिंह के फिर ले आएँ
मिलकर अपना राष्ट्र बचाएँ


गीली मिट्टी हाथ हमारे
पूरे कर लें सपने सारे
सद्भावों का रंग ले आएँ
देश भक्ति का जल बरसाएँ
अदभुत् सुन्दर मूर्ति बनाएँ
भारत माता के चरणों में
अपनी अनुपम भेंट चढ़ाएँ
अपना गुरुत्तर भार निभाएँ
आओ एक इतिहास बनाएँ

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