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फिर आया फागुन….

>> Friday, February 26, 2010


फिर आया फागुन….


फिर आया फागुन


रंगों की बहार


तुम भी आजाओ


ये दिल की पुकार



टेसू के फूलों ने


धरती सजाई


अबीर, गुलाल ने


चाहत जगाई


कोयल की कुहू


डसे बार- बार


तुम भी आ जाओ…

….

खिलती नहीं दिल में


भावों की कलियाँ


सूनी पड़ी मेरे


जीवन की गलियाँ


तुम बिन ना मौसम में


आए बहार


तुम भी आजाओ…..

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प्रेम की ऋतु फिर से आई

>> Friday, February 12, 2010

प्रेम की ऋतु फिर से आई

फिर नयन उन्माद छाया

फिर जगी है प्यास कोई

फिर से कोई याद आया

फिर खिलीं कलियाँ चमन में

रूप रस मदमा रहीं----

प्रेम की मदिरा की गागर

विश्व में ढलका रही

फिर पवन का दूत लेकर

प्रेम का पैगाम आया-----

टूटी है फिर से समाधि

आज इक महादेव की

काम के तीरों से छलनी

है कोई योगी-यति

धीर और गम्भीर ने भी

रसिक का बाना बनाया—

करते हैं नर्तन खुशी से

देव मानव सुर- असुर

‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे

प्रेम रस में सब हैं चूर

प्रेम की वर्षा में देखो

सृष्टि का कण-कण नहाया

प्रेम रस की इस नदी में

आओ नफ़रत को डुबा दें

एकता का भाव समझें

भिन्नता दिल से मिटा दें

प्रान्तीयता का भाव देखो

राष्ट्रीयता में है समाया--

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