कवि तुम पागल हो--?
>> Wednesday, July 9, 2008
कवि तुम पागल हो--?
सड़क पर जाते हुए जब
भूखा नंगा दिख जाता है
हर समझदार आदमी
बचकर निकल जाता है
किसी के चेहरे पर भी
कोई भाव नहीं आता है
और तुम---?
आँखों में आँसू ले आते हो
जैसे पाप धोने को
आया गंगाजल हो--
कवि तुम पागल हो ---?
जीवन की दौड़ में
दौड़ते-भागते लोगों में
जब कोई गिर जाता है
उसे कोई नहीं उठाता है
जीतने वाले के गले में
विजय हार पड़ जाता है
हर देखने वाला
तालियाँ बजाता है
पर-- तुम्हारी आँखों में
गिरा हुआ ही ठहर जाता है --
जैसे कोई बादल हो--
कवि-- तुम पागल हो--?
मेहनत करने वाला
जी-जान लगाता है
किन्तु बेईमान और चोर
आगे निकल जाता है
और बुद्धिजीवी वर्ग
पूरा सम्मान जताता है।
अपने-अपने सम्बन्ध बनाता है
पर तुम्हारी आँखों में
तिरस्कार उतर आता है
जैसे- वो कोई कातिल हो
कवि? तुम पागल हो --
सीधा-सच्चा प्रेमी
प्यार में मिट जाता है
झूठे वादे करने वाला
बाजी ले जाता है
सच्चा प्रेमी आँसू बहाता है
तब किसी को भी कुछ
ग़लत नज़र नहीं आता है
पर--तुम्हारी आँखों में
खून उतर आता है
उनका क्या कर लोगे
जिनका दिल दल-दल हो
कवि तुम पागल हो
धर्म और नैतिकता की
बड़ी-बड़ी बातें करने वाला
धर्म को धोखे की दुकान बनाता है
तब चिन्तन शील समाज
सादर शीष नवाता है
सहज़ में ही--
सब कुछ पचा जाता है
और तुम्हारे भीतर
एक उबाल सा आजाता है
लगता है तुमको क्यों
चर्चा ये हर पल हो ?
कवि तुम पागल हो --?
ये दुनिया तो ऐसी है
ऐसी रहेगी
तुम्हारी ये आँखें यूँ
कब तक बहेंगी?
पोछों अब इनको
अगन को जगा दो
सृष्टा बने हो तो
अमृत बहा दो
उठाओ कलम और
शक्ति बहा दो
8 comments:
सृष्टा बने हो तो
अमृत बहा दो
उठाओ कलम और
शक्ति बहा दो
बहुत खूब शोभा जी ...शायद आपकी लिखी यह पहले भी पढ़ी है .
bhut sundar. sahi bhi likha hai. likhati rhe.
kavi man hai na to pagal to hoga hi.....aapki kavita bahut sundar hai.
कवि की संवेदना और संवेदना में सन्निहित पागलपन का बया करती बेहतरीन रचना..
***राजीव रंजन प्रसाद
वाह!! आज मुझे समझ आया कि क्यूँ कवी वर्ग को लोग पागल समझते हैं.
बहुत बढ़िया ! कवि ही क्या हम सब कभी कभी पागल ही होते हैं, और बहुत अच्छा है कि अभी भी संसार में पागल शेष हैं।
घुघूती बासूती
हर समझदार आदमी
बचकर निकल जाता है
किसी के चेहरे पर भी
कोई भाव नहीं आता है
और तुम---?
आँखों में आँसू ले आते हो
जैसे पाप धोने को
आया गंगाजल हो--
Shobhaji, aise paagal log ab bhi is duniya mein hai, chahe wah kavi ho ya koi aur sadharan vyakti, shayad isi liye yah duniya ab bhi chal rahi hai aur balancing ki koshish kar rahi hai.
वाह शोभा जी !
वाकई में भावुकता पागलपन ही है और खास तौर पर तब जब वो हर किसी की तकलीफ को महसूस करते हुए हो ! आपकी भावुकता को प्रणाम
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