प्रकाश की खोज
>> Friday, May 30, 2008
मैं एक अजर-अमर
शुद्ध स्वरूप आत्मा हूँ
शान्ति मेरा स्वभाव
और प्रकाश मेरा स्वरूप है
इसी कारण ….
सदा-सर्वदा
प्रकाश की ओर अग्रसर हूँ
जब भी,जहाँ भी
प्रकाश की कोई किरण
पाती हूँ
उसी ओर बढ़ जाती हूँ
किन्तु पास जाने पर
प्रकाश नहीं धोखा निकलता है
एक ऐसा धोखा……
जो आँखों को चौंधियाता है
किन्तु रौशनी नहीं देता
सत्य तो दिखाता है
किन्तु नग्न सत्य
जिसे देख आँखें शान्ति नहीं पाती
जलने लगती हैं…..
हृदय और अधिक उद्वेलित
और आवेशित हो जाता है
शान्ति की तलाश में
अशान्ति ही पाता है….
आज तक…..
प्रकाश ने सर्वदा
आँखें ही चौंधियाई हैं
जीवन की पूँजी बस
यूँ ही गँवाई है
9 comments:
सुंदर अभिव्यक्ति.. बधाई स्वीकार करे..
शोभा जी
बेहद खूबसूरत शब्दों से अपने भावों को आप ने कविता में ढाला है. बधाई.
नीरज
kavita ke bhavo ko aapka chitr bhi ek sajeev roop deta hai,vakai ek sundar kavita hai.....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
bahut hi sundar,bahut badhai
एक अच्छी और दारशनिक रचना, बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति शोभा जी
Shobhaji, aap ki is kavita ke bhaav kuchh samaj mein nahi aaye. Jab Prakash hi apna swaroop bata rahi hain to phir aap aur kis prakash ko dhundh rahi hai aur kis prakash ki aur agresar hai aap?
सत्य तो दिखाता है
किन्तु नग्न सत्य
जिसे देख आँखें शान्ति नहीं पाती
जलने लगती हैं…..
Aur jo nagna satya aap dekh rahi hai to yahan kahna chahoonga ki satya to hamesa nagna hi hota hai aur aise satya ko jo sweekar kar sake wahi reality hai. Satya to jis swaroop mein bhi hai, agar wah satya hai to usi ko aap ko sweekar karna hoga.......
बहूत खूब
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