"माँ"
>> Saturday, May 10, 2008
"माँ"
एक प्यारा सा शब्द
एक मीठा सा रिश्ता
प्रेम उदधि
त्याग की मूरत
ईश्वरीय शक्ति
आँचल में समेटे
ममता का सागर
ममता से लबालब
राहों में बिछी
देखती हैं सपने
सदा संरक्षण को आतुर
एक सच्चा सम्बल
एक शक्ति और एक आस
जीवन में भर देती
सदा विश्वास........
आज के दिन दूँ क्या
तुमको उपहार
मस्तक झुकाती हूँ
सहित आभार
8 comments:
माँ की महिमा निराली होती है अपने माँ के ऊपर बड़ी सुंदर कविता लिखी है जिसके लिए आप धन्यवाद की पात्र है
very nice poem, and attache picture is so beautiful
maa par kuch bhi likho......achha apne aap ho jata hai.
दस दिन माँ के साथ कैसे बीत गए पता ही नहीं चला माँ पर आपकी कविता में सभी शब्द चाशनी में डूबे लग रहे हैं. मीठे मीठे गुलाब जल से महके महके.
मां वो हे जो हमेशा हमारे साथ रहती हे, मुझे यहां कभी मुस्किल होती हे तो मां को झट पता चल जाता हे, धन्यवाद इस सुन्दर कविता के लिये
Pyaar, Dullar, Meethasssssss, Tyaag, Balidan, in sabhi aur aise aur bhi kayi shabdon ka nichod hai "MAA" jiska koi vikalp nahi is duniya mein. Bahot hi achhi kavita ek baar fir, is vishay per..
maa jaisa koi shabd nahin, maa jaisi koi cheez nahin. maa jaisa kuchh bhi to nahin hai.
सभी पाठकों का धन्यवाद। इसी प्रकार स्नेह बनाए रखें।
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