कभी-कभी
>> Tuesday, May 20, 2008
कभी-कभी सब कुछ
अच्छा क्यों लगने लगता है ?
बिना कारण कोई
सच्चा क्यों लगने लगता है ?
क्यों लगता है कि
कुछ मिल गया ?
अँधेरे में जैसे चिराग जल गया ?
हवाओं की छुवन
इतनी मधुर क्यों लगने लगती है ?
पक्षी की चहचहाहट
क्यों मन हरने लगती है ?
मन के आकाश में
रंग कहाँ से आ जाते हैं ?
किसी के अंदाज़
क्यों इतना भा जाते हैं ?
भीनी-भीनी खुशबू
कहाँ से आजाती है ?
और चुपके से
हर ओर बिखर जाती है ?
ना जाने कौन
कानों में चुपके से
कुछ कह जाता है ।
जिसे सुनकर-
मेरा रोम-रोम
मुसकुराता है ।
16 comments:
सुंदर रचना है शोभा जी
ना जाने कौन
कानों में चुपके से
कुछ कह जाता है ।
जिसे सुनकर-
मेरा रोम-रोम
मुसकुराता है
वाह!!!
***राजीव रंजन प्रसाद
शोभा जी
बहुत सुंदर शब्द और उतने ही सुंदर भाव....वाह बहुत खूब.
नीरज
bahut hi khubsurat badhai
ना जाने कौन
कानों में चुपके से
कुछ कह जाता है ।
जिसे सुनकर-
मेरा रोम-रोम
मुसकुराता है ।
bahut khoobsurat panktiya hai
man khush huaa apke blog par aaakar,likhen,likhtee rahen
आपका ये जुदा अंदाज भी खूब है....
कविता बहुत अच्छी लगती है कभी कभी!! :)
बेहतरीन!
वाह...बहुत प्यारी कविता.! सभी के साथ ऐसा होता है...
वाह, वाह, वाह ....
शोभा जी,
आप की कवितायें मन को छूनेवाली हैं.
जितने सुंदर व सकारात्मक भाव, उतनी ही तरल व पारदर्शी भाषा.
सारी कवितायें पाठकीय संवेदना को जगाती हैं. आगे भी पढूंगा.
शोभा जी,
सुन्दर प्रीत भरी रचना है.
खुशी या गम दोनों ही मन की भावनायें हैं... वक्त और परिस्थितियों के साथ बदलती है..प्रीत का मौसम बना रहे तो किसी और क्या चाहिये.
सभी मित्रों का बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके प्रोत्साहन से लिखने और पढ़ने का उत्साह बढ़ गया है। बस इसी तरह उत्साह बढ़ाते रहें। सस्नेह
sundar, ati sundar
aapki lekhni anavrat chalti rahe, inhi shubhkamnaon ke saath
Nice poem Shobhaji,
Jab mann bahot hi khush ho jata hai jis waqt tabhi yah anubhuti mehsoos kar pate hain ya phir....
... Jab pyaar kisi se hota hai.... ab aap soch lijiye. Lekin jaisi ki maine pahle bhi likha hai, aap ki likhaai ke her pahloo mein jaan hoti hai........
जब प्रेम आता है जीवन में तो कैसा अनुभव होता है? अति सुंदर वर्णन किया है आपने.
Post a Comment