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हे कृष्ण

>> Friday, August 22, 2008

हे कृष्ण
आज सारा भारत

पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा से
तुम्हें नमन कर रहा है ।
हे योगीराज
जितेन्द्रिय
परम ग्यानी
परम प्रिय
तुम्हारी भक्ति की धारा
एक पवित्र भाव बनकर
दिलों में बह रही है ।
किन्तु हे परम प्रिय
परम श्रद्धेय
तुमने गीता में
सबको आश्वासन क्यों दिया?
स्वयं कर्म योगी होकर भी
सबको परमुखापेक्षी
क्यों बना दिया ?
अब दुःख आने पर
लोग संघर्ष नहीं करते
तुम्हें पुकारते हैं ।
हे जितेन्द्रिय
तुम्हारे भक्त कामनाओं
के दास बन चुके हैं ।
भक्ति तो करते हैं
पर कर्म तज चुके हैं ।
अन्याय से दुखी तो होते हैं
पर उसका प्रतिकार
नहीं कर पाते ।
कब तक हम प्रतीक्षा करेंगें?
हमें बल दो कि हम
खुद अन्याय से लड़ पाएँ ।
तभी तम्हारा जन्म
दिवस मनाएँ
सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँ
सच्ची भक्ति कर पाएँ ।
जय श्री कृष्ण

21 comments:

Ashok Pandey August 22, 2008 at 7:15 PM  

कृष्‍णभक्ति से ओत-प्रोत कर्म का संदेश देती रचना को पढ़ना सुखद रहा। सही कह रही हैं आप भाव के साथ कर्म भी जरूरी है। मुझे महाकवि निराला की ये पंक्तियां याद आ रही हैं-

योग्‍य जन जीता है
पश्चिम की उक्ति नहीं
गीता है, गीता है
स्‍मरण करो बार बार
जागो फिर एक बार।

रंजू भाटिया August 22, 2008 at 7:25 PM  

जय कन्हैया लाल की .सुंदर कविता लिखी है आपने इस पर

डॉ .अनुराग August 22, 2008 at 7:30 PM  

सुंदर कविता लिखी है

Radhika Budhkar August 22, 2008 at 7:41 PM  

बहुत अच्छा लिखा हैं आपने ,बस एक बात कहना चाहूंगी,श्रीकृष्ण ने अगर देह त्यागी भी हो तब भी वे मरे नही हैं,वे दिव्य पुरूष हैं,उन्हें स्वयं विष्णु का अवतार माना जाता हैं,वे आज भी संसार के सभी व्यक्तियों के मन में जीवित हैं ,वे अनादी-अनश्वर हैं ,वे ईश्वर के रूप में सर्वत्र विद्यमान हैं,श्रद्धांजली मृत्यु को प्राप्त हुए इंसानों को दी जाती हैं,ईश्वर को नही,इसलिए श्रध्दान्जली की जगह श्रद्धासुमन अर्पित कर पाए.बस इतना ही .

धन्यवाद !

Radhika Budhkar August 22, 2008 at 7:55 PM  

एक्च्युली श्रद्धासुमन भी नही,"प्रेमांजली दे पाए" या ऐसा ही कुछ. आप बेहतर सोच सकती हैं

cartoonist ABHISHEK August 22, 2008 at 8:02 PM  

ठीक लिखा आपने....."दुःख आने पर लोग अब संघर्ष नहीं करते "

ताऊ रामपुरिया August 22, 2008 at 9:01 PM  

शब्दों का अत्यन्त ही मार्मिक संयोजन है !
अति सुन्दरतम रचना ! धन्यवाद !

Udan Tashtari August 22, 2008 at 9:34 PM  

सुंदर कविता!!

Nitish Raj August 22, 2008 at 10:45 PM  

कृष्ण के जन्म से पहले उनकी याद और उस याद के बहाने लोगों का हाल...बहुत ही बढ़िया...उत्तम।

दिनेशराय द्विवेदी August 22, 2008 at 11:17 PM  

हम कृष्ण और राम में खुद को नहीं देखते, क्यों?

Smart Indian August 23, 2008 at 4:05 AM  

बहुत सुंदर और सामयिक कविता.
श्री कृष्ण के वचन और जीवन आज भी उतना प्रासंगिक है जितना हजारों साल पहले था. गीता ने स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को जान देने की प्रेरणा भी दी और साथ ही साथ अहिंसा अपनाने की भी. आज जो लोग भगवान् की आस लगाए बौठे हैं उन तक शायद भगवान् कृष्ण का संदेश कभी पहुँचा ही नहीं.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` August 23, 2008 at 6:57 PM  

जय श्री कृष्ण !

समयचक्र August 23, 2008 at 10:14 PM  

सुंदर कविता जय श्रीकृष्ण....

मीत August 25, 2008 at 6:04 PM  

shukriya shobha ji..
apka yeh blog bahut hi acha lga..

art August 26, 2008 at 10:31 AM  

बहुत ही उत्तम, सुंदर लिखा...

नीरज गोस्वामी August 26, 2008 at 4:19 PM  

अनुपम रचना...बधाई
नीरज

PREETI BARTHWAL August 26, 2008 at 4:55 PM  

सुन्दर रचना

Vinaykant Joshi August 28, 2008 at 6:11 AM  

बहुत ही अच्छी कविता, पढ़ कर अच्छा लगा
जे श्री कृष्ण

Rajesh August 28, 2008 at 4:55 PM  

Shree Krishna Janm ki aap ko bahot bahot badhaaiyaan. Bilkul hi sahi likha hai aapne, insaan ab koi sanghars kar hi nahi paata, bus jab bhi jaroorat hoti hai, bhagwaan ko pukar leta hai. Per bhagwaan ke pass jaane se pahle kyon nahi karta koi thos pratikaar. Agar her baar bhagwaan hi unke kaam ayenge to hum khood kya kar payenge? Hum insaan koi doodh peete bachhe to nahi hi hai na!

महेन्द्र मिश्र September 3, 2008 at 12:20 PM  

"गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ"
श्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .....

Asha Joglekar September 10, 2008 at 5:46 AM  

Sunder kawita

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