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वरदान

>> Tuesday, August 5, 2008


मैने ज़िन्दगी से
खुशी का बस..
एक पल माँगा था
उसने उदार होकर
अपार भंडार दे दिया

प्रसन्नता की बस एक
लहर माँगी थी......
उसने पूरा पारावार दे दिया
तृप्ति का,सुख का
बस एक कण माँगा था
उसने उल्लास का....
दरिया ही बहा दिया

उसकी उदारता से
अभिभूत हो गयी हूँ
और कुछ भयभीत भी
हो गयी हूँ.....
क्या इतना सुख
सँभाल भी पाऊँगी ?
आनन्दातिरेक से
पागल तो नहीं हो जाऊँगी
?

23 comments:

रंजू भाटिया August 5, 2008 at 5:18 PM  

मैने ज़िन्दगी से
खुशी का बस..
एक पल माँगा था
उसने उदार होकर
अपार भंडार दे दिया

बहुत सुंदर लिखा है शोभा जी ..

सुनीता शानू August 5, 2008 at 5:40 PM  

बहुत सुन्दर शोभा जी, अगर जिन्दगी में उम्मीद से दुगना मिल जाये तो यह समझिये कि जिन्दगी भर आप इश्वर के ऋणी हो गये हैं.

डॉ .अनुराग August 5, 2008 at 7:18 PM  

भावुक हो कर लिखा है...

राजीव रंजन प्रसाद August 5, 2008 at 8:10 PM  

शोभा जी आपने यह कविता नहीं दर्शन लिखा है। बेहतरीन..


***राजीव रंजन प्रसाद

राज भाटिय़ा August 5, 2008 at 8:53 PM  

बहुत खुब,आप की आज की पोस्ट जिन्दगी से भरपुर हे, बहुत खुब, बहुत ही अच्छी रचना लिखी हे,धन्यवाद

Udan Tashtari August 5, 2008 at 9:47 PM  

बहुत बढिया.

Mumukshh Ki Rachanain August 6, 2008 at 12:44 AM  

शोभा जी ,

आपकी कविता आपकी सकारात्मक सोंच का दर्शन कराती है.
इश्वर ने जितना भी कतरा आपको दिया उसी में आपको पारावार दिखना , उसी में संतुष्टि प्राप्त हो जाना आपकी महानता को ही इंगित करता है.
चन्द्र मोहन गुप्त

Dr Parveen Chopra August 6, 2008 at 5:35 AM  

आप की ये पंक्तियां पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद.

Arvind Mishra August 6, 2008 at 7:25 AM  

अभिभूत और भयभीत का अच्छा शब्द संयोजन बन पडा है -कविता भी संक्षिप्त और अछ्ही बन पडी है .

बालकिशन August 6, 2008 at 8:09 AM  

बहुत खूब.
हम सब इसी ढंग से सोचें तो दुखों का ग़मों का नामोनिशान मिटा देंगे.
बहुत अच्छे
आभार.

Ashok Pandey August 6, 2008 at 5:18 PM  

अति सुंदर। हमारी शुभकामना है कि आप की जिंदगी इसी तरह खुशियों से दामन भरती रहे। लेकिन आनंदातिरेक से पागल होने की बात न करें, इससे हम भयभीत होते हैं :)

समय चक्र August 6, 2008 at 9:23 PM  

बहुत सुन्दर शोभा जी,बहुत बढिया.

Rajesh August 7, 2008 at 11:45 AM  

Positive vichar dhara se bhari puri kavita hai yah. Agar her koi vyakti use jo kuchh mila hai us ko aap ki tarah hi poora hi maan kar chale yaa aisa maan le ki jitna maanga tha us se jyada hi mila hai, kahin koi dukhi nahi rahega. Manushya ke vicharon mein yahi goon ki avashyakta hai. Haan jitna aur jo bhi mila hai use pacha pana ya use sambhal paan bahot hi kathin hai aur isi goon wala vyakti sukhi rah sakta hai.

Dr. Chandra Kumar Jain August 7, 2008 at 5:32 PM  

बहुत सुंदर
सकारात्मक
जीवन के प्रति कृतज्ञता से
आपूरित सहज अभिव्यक्ति.
===================
बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन

seema gupta August 7, 2008 at 6:07 PM  

मैने ज़िन्दगी से
खुशी का बस..
एक पल माँगा था
उसने उदार होकर
अपार भंडार दे दिया
" a beautiful poetry full of joy, energy and life"
Regards

art August 7, 2008 at 9:58 PM  

aanand len in kshano ka

Smart Indian August 8, 2008 at 7:32 AM  

उसकी उदारता से
अभिभूत हो गयी हूँ
और कुछ भयभीत भी
हो गयी हूँ...


बहुत सुंदर!

vipinkizindagi August 9, 2008 at 7:34 PM  

बहुत सुंदर........

Unknown August 10, 2008 at 10:47 PM  

गीता में एक श्लोक है-

सर्वधर्मानपरित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापयेभ्यो मोक्षिश्यामि मा शुच:।।

ईश्वर कहता है चिंता मत कर, और जो सारी चिंताएं छोड़कर उसका हो गया, उसके संरक्षक तो फिर ईश्वर ही हैं। और तभी शायद मिलता है उम्मीद से दोगुना।

अच्छा लिखा है...साधुवाद।

सादर,
पंकज शुक्ल

महेन्द्र मिश्र August 17, 2008 at 10:02 PM  

बहुत सुन्दर शोभा जी

महेंद्र मिश्रा जबलपुर.
पुराना ब्लॉग समयचक्र खो गया है

Poonam Agrawal August 27, 2008 at 6:14 PM  

This creation is indeed full of life..ishwar ko thanks kehne ka isse achcha tarika aur kya hoga..all the best...

Anonymous August 27, 2008 at 6:30 PM  

wah wah kya baat hain

Billa September 2, 2010 at 10:48 AM  

Bahoot sundar kavita hai, bahoot hi pyari hai, mere mann mein basi hui hai ye kavita. Bahoot hi khas hai ye kavita mere liye.

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