मँहगाई
>> Monday, August 11, 2008
हर कदम मँहगाई का दानव खड़ा
आरजूएँ दफ्न होकर रह गईं
भूख को अब किस कुँए में डाल दूँ
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
हैं सजे बाज़ार छाई रौनकें
एक चादर इनपे लाओ डाल दूँ।
आँख में चुभती हैं लाखों ख्वाइशें
दर्द इनका आँसुओं में ढ़ाल दूँ।
जल रहा है देश इसकी आग में
अब शुभी किसको यहाँ इल्ज़ाम दूँ।
21 comments:
हैं सजे बाज़ार छाई रौनकें
एक चादर इनपे लाओ डाल दूँ।
बहुत सुंदर..
आपकी कविता उम्दा है। बधाई।
bhut sahi baat rachana me. badhai ho.
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
बहुत खूब सही कहा ..
सही कहा......आपने ...
आरजूएँ दफ्न होकर रह गईं
भूख को अब किस कुँए में डाल दूँ
आरजूएँ दफ्न होकर रह गईं
भूख को अब किस कुँए में डाल दूँ
वाह वाह . क्या लिखा है.
बहुत सुंदर..
हैं सजे बाज़ार छाई रौनकें
एक चादर इनपे लाओ डाल दूँ।
ये तो आपने हर इक के मन में उत्पन्न होने वेल भाव लिख दिए.. बहुत सुंदर
आँख में चुभती हैं लाखों ख्वाइशें
दर्द इनका आँसुओं में ढ़ाल दूँ।
-बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.
आँख में चुभती हैं लाखों ख्वाइशें
दर्द इनका आँसुओं में ढ़ाल दूँ।
-बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.
आँख में चुभती हैं लाखों ख्वाइशें
दर्द इनका आँसुओं में ढ़ाल दूँ।
कया बात कही हे आप ने , सच मे इस महगाई ने तो आम आदमी की कमर ही तोड दी हे,धन्यवाद
सुंदर और प्रभावी प्रस्तुति.
बहुत अच्छे
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
" ytharth se prepurn pankteeyan, "
Regards
काश सत्य सुंदर भी हो. आप हमेशा ही बहुत अच्छा लिखती हैं. यह कविता भी बहुत ही सुंदर है. महंगाई का दर्द थोड़ा कम हुआ इसे पढ़कर. धन्यवाद!
अश्कों से क्या समझोगे हाल ए दिल जिगर का,
आंखों तक आते आते रंग उड़ गया लहू का..
आपकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति बहुत गहरे तक है। ज़िंदगी के फलसफे पर कुछ लिखा हो तो, साझा कीजिए। आपकी मां पर लिखी कविता बहुत ही उम्दा लगी। आंखों के किसी कोर में एक आंसू झलक आया। बहुत बहुत बधाई, शोभा जी।
पंकज शुक्ल
pankajshuklaa@gmail.com
09987307136
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
वैसे तो कविता की हर पंक्ति अच्छी है मगर ये कुछ ज्यादा अच्छी और सच्ची है...
आपकी कविता की जितनी भी तारीफ़ की जये कम है.आम इन्सान की व्यथा को खूब उकेरा है आपने.
samvedanasheel post bahut sundar.apko bhi bhi ajadi diwas ki dhero shubhakamana .
आरजूएँ दफ्न होकर रह गईं
भूख को अब किस कुँए में डाल दूँ
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
A great thought Shobhaji, aaj ke daur ka sahi chitra varnan kiya hai aap ne. Bhookh ko ab kis kuen mein daal doon! this is a fantastic sentence of the poem. Congratulations for such a beautiful write up......
आरजूएँ दफ्न होकर रह गईं
भूख को अब किस कुँए में डाल दूँ
रिश्ते-नाते भी हुए बेज़ान से
ज़ेब में कौड़ी नहीं जो बाँट दूँ
A great thought Shobhaji, aaj ke daur ka sahi chitra varnan kiya hai aap ne. Bhookh ko ab kis kuen mein daal doon! this is a fantastic sentence of the poem. Congratulations for such a beautiful write up......
जल रहा है देश इसकी आग में,
अब शुभी किसको यहाँ इल्जाम दे.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति बधाई .
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