ये क्या हुआ…….
>> Sunday, June 29, 2008
मेरी एक झलक पर
बाग-बाग होने वाले
मेरे प्यारे पिता !
तुम इतना क्यों बदल गए?
मुझे भरपूर प्यार और
आराम देने वाले तुम..
हाँ तुम ही तो थे
मेरी एक-एक पीड़ा पर
तुम्हारी आँखों से
आँसुओं का सागर
बह जाता था
उन दूधिया वात्सल्य
भरी आँखों में आज
आक्रोष क्यों आगया ?
तुम्हारी अँगुली पकड़कर
बचपन में चलना सीखा
तुम्हारी स्नेहिल छाया में
सदा स्वयं को सुरक्षित पाया
मेरा एक मात्र सहारा
बस तुम ही तो थे
माँ से भी बस मेरा
भूख का ही नाता था
पर तुमसे तो मेरा रिश्ता
अभिन्न और अटूट था
और तुम भी
हाँ तुम भी मेरे लिए
सदा,सर्वदा प्रस्तुत रहे
फिर आज ये क्या हो गया?
मेरे पिता तुम
मेरे रक्षक से
मेरे घातक कैसे हो गए ?
8 comments:
shobhaji aapki kavita dil ko chhu gai. bhut sundar. jari rhe.
bahut khub.aapki kavita ne dil ko choo liya.
bबहुत सुन्दर...बधाई.
वाकई बहुत सुंदर लिखा है आपने
बहुत सुंदर लिखा है आपने
Rachna
kuch dard sa dikhta hai is kavita me.....
शोभा जी, बहुत ही सुंदर रचना है. मन गीला हो गया.
माँ से भी बस मेरा
भूख का ही नाता था
पर तुमसे तो मेरा रिश्ता
अभिन्न और अटूट था
फिर आज ये क्या हो गया?
मेरे पिता तुम
मेरे रक्षक से
मेरे घातक कैसे हो गए ?
pataa nahi Shobhaji yah kaise ho sakta hai aur kaise ho gaya? Ek Pita aur Putri ke rishtey ko badnaam karta hua sahi sach.
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