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हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं

>> Sunday, September 12, 2010

हम सब

हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं

जरा सोचें

किस बात पर इतरा रहें हैं ?

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है

हिन्दी सरल-सरस भी है

वैग्यानिक और

तर्क संगत भी है ।

फिर भी--

अपने ही देश में

अपने ही लोगों के द्वारा

उपेक्षित और त्यक्त है ------

---------------जरा सोचकर देखिए

हम में से कितने लोग

हिन्दी को अपनी मानते हैं ?

कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?

अधिकतर तो--

विदेशी भाषा का ही

लोहा मानते है ।

अपनी भाषा को

उन्नतिका मूल मानते हैं ?

कितने लोग

हिन्दी कोपहचानते हैं ?-----------------

--------भाषा तो कोई भी बुरी नहीं

किन्तु हम

अपनी भाषा से

परहेज़ क्यों मानते हैं ?

अपने ही देश में

अपनी भाषा की

इतनीउपेक्षा

क्यों हो रही है

हमारी अस्मिता

कहाँ सो रही है ?

व्यवसायिकता और लालच की

हद हो रही है ।-----------------

--इस देश में

कोई फ्रैन्च सीखता है

कोई जापानी

किन्तु हिन्दी भाषा

बिल्कुल अनजानी

विदेशी भाषाएँ

सम्मान पा रही हैं

औरअपनी भाषा

ठुकराई जारही है ।

मेरे भारत के सपूतों


ज़रा तो चेतो ।

अपनी भाषा की ओर से

यूँ आँखें ना मीचो ।

अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम आएगी ।

किन्तु

अपनी भाषा तो

ममता लुटाएगी ।

इसमें अक्षय कोष है

प्यार से उठाओ

इसकी ग्यान राशि से

जीवन महकाओ ।

आज यदि कुछ भावना है

तो राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।

9 comments:

प्रवीण पाण्डेय September 12, 2010 at 8:28 PM  

प्रस्तुत हूँ आपके वचन को मानने के लिये, हिन्दी को अपनाने के लिये।

वीरेंद्र सिंह September 22, 2010 at 7:30 PM  

बहुत ही अच्छी कविता लिखी है .....

आपकी चिंता अपनी जगह पर बिल्कुल सही है .
सुंदर और सार्थक कविता के लिए

आपका आभार

लाल कलम October 15, 2010 at 1:16 PM  

बिल्कुल मै आप के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ अपनी हिंदी बहुत गरीब और महत्वहीन हो गयी है

रंजना October 22, 2010 at 6:04 PM  

आपके एक एक शब्द में मैं अपने शब्द मिलाती हूँ...बहुत सही कहा है आपने...

BrijmohanShrivastava November 5, 2010 at 10:33 PM  

आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan November 18, 2010 at 10:03 AM  

मान्यवर
नमस्कार
अच्छी रचना
मेरे बधाई स्वीकारें

साभार
अवनीश सिंह चौहान
पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/

Satish Saxena December 8, 2010 at 2:17 PM  


बड़े दिन हो गए आप कहीं खो गयीं थी ! आज ढून्ढ पाया !आज से आपको फालो कर रहा हूँ, ताकि भविष्य में संपर्क रहे !
सादर

Kunwar Kusumesh December 23, 2010 at 1:56 PM  

हिंदी के प्रति आपकी समर्पण भावना वन्दनीय है.

Anonymous December 24, 2010 at 10:14 AM  

ACHCHHA LIKHTE HO LIKHA KARO

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