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खूब पहचानती हूँ

>> Sunday, January 6, 2013

खूब पहचानती हूँ
मैं…….
तुमको और तुम्हारे
समाज के नियमों को
जिनके नाम पर
हर बार…….
मुझे तार-तार किया जाता है
किन्तु अब…..
मेरी आँख का धुँधलका
दूर हो चुका है
अब सब कुछ
साफ दिखाई दे रहा है
अरे! हर युग में
तुम्हीं तो कमजोर थे
तुमने सदा ही
भयाक्रान्त हो
मेरी ही शरण ली है
और मैं …….
हमेशा से तुम्हारी
भयत्राता रही

जन्म लेते ही तुम
मुझ पर आश्रित थे
पल-पल …
मेरे ही स्नेह से
पुष्पित-पल्लवित तुम
इतने सबल कैसे हो गए?

मैने ही विभिन्न रूपों में
तु्म्हें उबारा है
माँ, भगिनी, प्रेयसी और
बेटी बनकर
तुम्हें संबल दिया है

और आज भी…
हाँ आज भी…
तुम ……..
मेरी ही …
कृपा के पात्र हो
मेरे द्वार के भिखारी
तुम-- हाँ तुम

किन्तु आज मैने
तुम्हारे स्वामित्व के
अहं को तोड़ दिया है
उस कवच में रहकर
तुम कब तक हुंकारोगे?

आज तुम मेरे समक्ष हो
कवच- हीन….
वासनालोलुप…..
मेरे लिए तरसते…
हुँह!

कितने दयनीय …
लगते हो ना..
अब तुम्हारी कोई चाल
मुझपर असर नहीं करती
अपने आत्मबल से मैं
तुम्हें भीतर देख लेती हूँ

बाज़ी आज मेरे हाथ है
सावधान!
षड़यंन्त्र की कोशिश
कभी मत करना
मेरी आँखों में अँगार है
और……
और……
तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है

11 comments:

शोभा January 6, 2013 at 12:50 PM  

Bahut pehle lilha tja per aaj ek purush ki mansikta ne fir se fkunkarn
ne ko badhya kiya

शोभा January 6, 2013 at 12:50 PM  

Bahut pehle lilha tja per aaj ek purush ki mansikta ne fir se fkunkarn
ne ko badhya kiya

प्रवीण पाण्डेय January 6, 2013 at 1:22 PM  

प्रभावी कविता, स्पष्ट संप्रेषण

दिगम्बर नासवा January 6, 2013 at 2:58 PM  

इन अंगारों को जिलाए रखने की सतत कोशिश जरूरी है ...
बहुत ही प्रभावी सार्थक रचना ...

Vinay April 11, 2013 at 7:35 PM  

नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!

Sushil Kumar April 26, 2013 at 8:20 PM  

सुंदर

Satish Saxena August 30, 2013 at 7:34 AM  

यह रूप बनाए रखें ..
शुभकामनायें आपको !

Unknown July 28, 2016 at 5:38 PM  

शोभा जी,
नमस्कार !
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तकनीक द्रष्टा February 12, 2018 at 7:09 PM  

अति उत्तम अति उत्तम

लाइफस्टाइल इन हिंदी February 12, 2018 at 7:10 PM  

dil ko choo gai

शोभा April 24, 2022 at 9:41 PM  

Sabhi ka abhar

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