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जवाहर लाल नेहरू का अर्थ है- प्रत्यक्ष ऋतुराज

>> Friday, November 13, 2009

जवाहर लाल नेहरू का अर्थ है- प्रत्यक्ष ऋतुराज,चिर जीवन और आनन्द का पुतला। उन्होने एक

शानदार जीवन जिया । सामान्य जीवन नहीं अपितु एक सार्थक जीवन। वे विश्व मानस थे। उन्होने

अपनी दुनिया में होरहे शोषण और अन्याय को खत्म करने के लिए अपनी शक्तियों का सद् उपयोग

किया, पंडित जवाहर लाल नेहरू मूल रूप से काश्मीरी ब्राह्मण थे। उनके परदादा को राजकौल नहर

के किनारे जगह मिली थी इसी से नेहरू कहलाए। इनका जन्म १४ नवम्बर १८८९ को इलाहाबाद में

एक धनाड्य परिवार में हुआ। माँ-बाप धनी और इकलौता बेटा हो तो अक्सर बिगड़ जाता है।

किन्तु इनको बचपन में ही उच्च संस्कार मिले। माँ और चाची की गोद में बैठकर रामायण और

महाभारत की कहानियाँ सुनीं। धनी परिवार ने बच्चे के शिक्षा के लिए अंग्रेज शिक्षक घर पर ही

नियुक्त किया । उन्होने उसके साथ रहकर काम में मन लगाना, बड़ों का आदर करना, कभी अपने

को हीन ना समझना, सब तरफ का ग्यान रखना तथा साफ रहना सीखा।

उच्च शिक्षा कैमरिज में हुई। वहीं पर देश की पुकार इनके कानों में पड़ी। मेरी कहानी में उन्होने

लिखा - यह हिन्दुस्तान क्या है जो मुझपर छाया बन हुआ है और मुझे बराबर अपनी ओर बुलाहै

रहा । उनका व्यक्तित्व बहु आयामी था। उनके व्यक्तित्व के निम्न पहलू मंत्र मुग्ध करने वाले हैं।

एक कुशल राजनेता- नेहरू जी एक कुशल राजनेता थे। गाँधी जी के नेतृत्व में राजनीति में प्रवेश

किया। उन्होने जन मानस को समझा। उनकी पीड़ा को दूर करने का बीड़ा उठाया। आज़ादी के बार

देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में देश को एक नई दिश दी। किसानो की समस्याओं को समझा
और दूर किया।

एक साहित्यकार -एक कुशल नेता के साथ-साथ वे एक उच्च कोटि के लेखक भी थे। अपने व्यस्त

जीवन से समय निकालकर साहित्य साधना करते थे। उनके पास भाषा का भंडार था, शैली रोचक

थी और कहने का ढ़ंग मनमोहक। जो भी लिखा हृदय से लिखा। उन्होने दर्जन से भी अधिक पुस्तकें

लिखी। उनमें सर्वाधिक लोकप्रिय रहीं- मेरी कहानी, विश्व इतिहास की एक झलक, भारत एक

खोज,लड़खड़ाती सी दुनिया,हमारी समस्याएँ, पिता के पत्र पुत्री के नाम आदि। इनकी भाषा

थिरकती हुई तथा शब्द बोलते हुए से लगते हैं। लेखन में उनका खुला हैदय झाँकता है। जेलों में

अपने समय उन्होने लेखन में ही बिताया। पिता के पत्र पुत्री के नाम यहीं लिखे। ये आज भी बच्चों

को प्रेरणा देते हैं।

लोकप्रिय नेता -देश की जनता उनसे बहुत प्यार करती थी। उनकी वाणी में जादू का सा प्रभाव था।

उन्हें देख लोग बहुत प्रसन्न होते थे। वे भी भारत की जनता से बेहद प्यार करते थे। इसीलिए उन्हें

जनता का जवाहर कहा जाता था। वे लोगों के बीव जाते, उनकी समस्याओं को समझते और उनसे

सम्पर्क करते थे। एक आम भारतीय भी उनसे मिलने में संकोच नअीं करता था। कहते हैं एक

बार उनके जन्मदिन पर एक किसान बहुत दूर से शहद की एक हाँडी लेकर आया। मिलने का समय

समाप्त हो चुका था। जवाहर लाल जी आराम करने ही जा रहे थे। उन्होने आवाज़ सुनी। कारण पूछा

और बाहर आए। किसान ने कहा- मैं बहुत दूर से आया हूँ इसलिए देर हो गई। नेहरू जी ने एक

अँगुली भर कर शहद अपने मुँह में डाला और दूसरी अँगुली ग्रामीण के मुँह में । बोले आज सबसे

कीमती उपहार तुमने ही मुझे दिया है। ग्रामीण बाग-बाग हो गया। फिर शाही सवारी में उसे घर

तक छुड़वाया। भला इतना प्रेम देख कौन दिवाना ना हो जाएग.


बच्चों के प्यारे चाचा बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू जी का सर्वाधिक प्रिय रूप था चाचा नेहरू का रूप।

वे बच्चों से बहुत प्रेम करते थै। अपना अधिकतर समय बच्चों के साथ बिताते और उस समय

स्वयं भी बच्चे बन जाते थे। पिता के पत्र पुत्री के नाम बच्चों के लिए ग्यान का भंडार है। चाचा

नेहरू का नाम लेते ही एक ऐसी छवि आँखों के सामने आती है जिसकी आँखों में बच्चों के लिए

असीम प्यार हो और जिसकी बाँहें सदा उन्हें गोद में लेने को आतुर रहती हैं। बच्चों के नाम उन्होने

एक लम्बा खत लिखा था मानो अपना दिल ही खोलकर रख दिया हो- प्यारे बच्चों तुम लोगों के

बीच में रहना मैं पसन्द करता हूँ। तुमसे बातें करने में और तुम्हारे साथ खेलने में मुझे बड़ा मज़ा

आता है। थोड़ी देर के लिए मैं भूल जाता हूँ कि मैं बेहद बूढ़ा हो चला हूँ। पत्र के अन्त में लिखा-

हमारा देश एक बहुत बड़ा देश है और हम सबको मिलजुल कर अपने देश के लिए बहुत कुछ करना

है। जिसका हृदय जितना नि्छल होगा, बच्चों के लिए उतना ही प्यार उसके दिल में होगा। बच्चों के

साथ वे स्वयं भी बच्चे बन जाते थे। एक बार बच्चों के कार्यक्रम में उन्होने भी नृत्य किया। एक बार

उनसे पूछा गया- शैतान लड़कों को कैसे सुधारा जाय ? उन्होने कहा- बच्चे को अपनी तरफ प्रेम से

खींचें। बच्चों के लालन-पालन में आपको क्या दोष दिखता है- आम तौर से हिन्दुस्तान में लाड़-

प्यार से बच्चों का नुकसान हो जाता है। वेदेशों में भी बच्चे उनसे बहुत प्यार करते थे। वे अक्सर

बच्चों के बारे में कहा करते थे- अगर तुमको भारत का भविष्य जानना है तो बच्चों की आँखों में

देखो। यदि उनकी आँखों में निराशा , डर और कमजोरी है, तो देश भी उसी दिशा में जाएगा और

उसका भविष्य भी अँधकार मय होगा। इसप्रकार नेहरू जी को याद करना है तो देश के बच्चों को

पूरी सुविधाएँ , उनको प्यार, अच्छा वातावरण और उन्नति के अवसर दो। उनसे प्यार करो।

9 comments:

roushan November 13, 2009 at 8:39 PM  

उनके जीवन के जिस भी पहलु पर नज़र डालें वो अभीभूत करने वाला है . एक इंसान जितना पूर्ण हो सकता है शायद वो उतने पूर्ण थे

aarya November 13, 2009 at 11:04 PM  

शोभा जी
सादर वन्दे!
मुझे माफ़ करें लेकिन मै इतिहास का बिद्यार्थी हूँ इसलिए आपकी इस चाटुकारिता को पचा नहीं पा रहा हूँ! वास्तविकता इससे कहीं अलग है. फिर भी चूँकि वे हमारे प्रथम प्रधानमंत्री रहे है अतः वह हमारे लिए सम्माननीय हैं.
पुनः मुझे क्षमा करें!
रत्नेश त्रिपाठी

राज भाटिय़ा November 13, 2009 at 11:24 PM  

शोभा जी जरा यहां भी नजर मारे इस नेहरु चाचा जी के बारे इस पर चटका लगाये, वेसे जो आप ने लिखान है हम नेभी यह झूठ बचपन मै पढा है.धन्यवाद

दिगम्बर नासवा November 14, 2009 at 1:17 PM  

Shobhi ji ... acha likha hai aapne ... Chacha Nehru ke jeevan ke baare mein sundar jaankaari, rochak tarike se likhi hai aapne ... unke janam din ko baal divas ke roop mein manaana unke baal prem ko darshaata hai ....

कविता रावत December 10, 2009 at 6:13 PM  

Shobhaji.... nehru ji ke baare mein likha aapka lekh bahut achha laga.

निर्झर'नीर December 24, 2009 at 3:09 PM  

राज भाटिय़ा जी की बात भी अर्थपूर्ण है यक़ीनन

डॉ. मनोज मिश्र December 31, 2009 at 10:27 PM  

वर्ष नव-हर्ष नव-उत्कर्ष नव
-नव वर्ष, २०१० के लिए अभिमंत्रित शुभकामनाओं सहित ,
डॉ मनोज मिश्र

Pushpendra Singh "Pushp" January 4, 2010 at 12:27 PM  

बेहतरी रचना के लिए
बहुत -२ आभार

raj February 1, 2010 at 12:00 AM  

shobha ji,
lagta hai ap bhi sarojni naydu banna chahti hai.itihas gawah to hai hi chatukaro ko chhodkar koi samkaleen nahi manega ki apke lekh me sachchai hai.
rajesh nigam
patrakar rashtriy sahara

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