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बादल

>> Saturday, August 4, 2007


स्मृति पटल पर कुछ बादल घिर आए हैं ।
उमड़-घुमड़ कर मधुर शोर ये मचाए है।
चेतना की बिजली भी बार-बार चमकती है।
दिल के कोने में एक फाँस सी चुभ जाती है ।
आँखों में अश्रु-जल की तरल बूँदें तैर जाती हैं ।
ऐसे में तम्हारी प्रिय याद बहुत आती है ।

जैसे ही हवा मेरा द्वार खट्खटाती है
तुम्हारी उँगलियों की सर-सराहट हो जाती है।
घर के हर कोने से तब खुशबू तेरी आती है।
महकती हुई साँसों में तेज़ी सी आ जाती है ।
लगता है कोई छवि आस-पास ही मँडराती है ।
वाणी बार-बार प्रेम-भरा गीत गाती है ।
तेरी याद बहुत आती है---------------

जब भी कहीं बिछड़ा कोई दोस्त कोई मिल जाता है ।
आँगन में मेरे भी एक फूल सा खिल जाता है ।
आँखों में अचानक से कुछ स्वप्न से जग जाते हैं ।
कितने ही अरमान मेरे दिल में मचल जाते हैं ।
फिर से कोई पगली तमन्ना मचल जाती है ।
आँखों के झरोखों से तसवीर निकल आती है ।
तेरी याद बहुत आती है---------------

कैसी ये अनोखी सी इस दिल की कहानी है ।
वो भूल गया मुझको दिल ने नहीं मानी है ।
ये फिर से बुलाता है उस गुजरे हुए कल को
जो दूर है जा बैठा उस भूले से प्रीतम को
फ़िर नेह की बाती के उजले से सवेरे को
जिसके बिना जीवन में अँधियारी सी छाती है
एक प्यास जगाती है तेरी याद क्यों आती है

शोभा महेन्द्रू

4 comments:

Mohinder56 August 8, 2007 at 12:08 PM  

विरह और मिलन का बहुत सुन्दर चित्रण किया है आप ने... एक पुराना गीत याद आ गया

"मैं जब भी अकेली होती हूं तुम चुपके से आ जाते हो
और थाम के मेरी बाहों को, बीते दिन याद दिलाते हो.
रो रो के तुम्हें खत लिखती हूं, और खुद पढ कर रो लेती हूं
जजबात की बहती आंधी में, हालात की नैया खेती हूं
कैसे हो, कहां हो, कुछ तो कहो.. रो रो के सदायें देती हूं
मैं जब भी अकेली..............."

Rajesh August 9, 2007 at 12:56 PM  

Smruti patal per kuchh baadal ghir aaye hai.....
jab bhi bichhda koi dost kahin mil jata hai.....
jo door hai ja baitha.......
kya adbhoot khayalat hai is kavita mein, shobha ji, jab kabhi bhi koi purana dost ya kuchh bhi purani cheejon ke baareme aap ke mann main yaadon ke baadal umad aate hai, tab aisa hi hota hai, un sabhi cheejon ki yaad bahot hi aati hai. Aur khas kar wah preetam, jo kisi ko bhool kar aur kahin ashiyana bana baitha hota hai, uski yaad aati hai to bus fir kya kahna.....aur kahte hai ki vaise bhi pahla pahla pyaar kabhi bhi kisi se bhi bhulaya nahi jata.
khoob sunder kavita hai......

Unknown August 14, 2007 at 6:53 PM  

आदरणीय शोभा जी
आपके ब्लाग पर पिछले कई दिनों से फुरसत में गहरायी से सभी कविताओं को पढने के बाद प्रतिक्रिया देना चाहता था. एक समीक्षक की तरह नहीं अपितु एक कवि की संवेदनाओं की अनुभुति स्वयं करके. जीवन में अनुभव का कोई भी स्थानपन्न नहीं हो सकता है. इस दृष्टि से आपकी रचनाओं में भावनात्मक वहाव के साथ एक परिपक्व अभिव्यक्ति भी है. मैं तो स्वयं ही कबीरपंथी जैसा रचनाकार हूं अतः काव्यात्मक शिल्प पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. आपका 'अनुभव' अच्छा लगा. भारतीय गणतंत्र की शुभकामनायें. ऐसे ही जो मन में आये लिखती रहें अच्छा ही होगा. धन्यवाद

श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

Unknown August 15, 2007 at 5:33 PM  

आदरणीय शोभा जी

क्षमा करें स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें

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