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मेरी आँखों में

>> Thursday, February 26, 2009


बरस गए हैं मेरी आँखों में

हज़ारों सपने

महकने लगे हैं टेसू

और मन

बावला हुआ जाता है


सपनों की कलियाँ

दिल की हर डाल पर

फूट रही है

और ये उपवन

नन्दन हुआ जाता है


समझ नहीं पा रही हूँ

ये तुम हो या मौसम

जो बरसा है

मुझपर

फागुन बनकर

फिर आया फागुन

>> Wednesday, February 18, 2009

फिर आया फागुन….

फिर आया फागुन

रंगों की बहार

तुम भी आजाओ

ये दिल की पुकार


टेसू के फूलों ने

धरती सजाई

अबीर, गुलाल ने

चाहत जगाई

कोयल की कुहू

डसे बार- बार

तुम भी आ जाओ…
….

खिलती नहीं दिल में

भावों की कलियाँ

सूनी पड़ी मेरे

जीवन की गलियाँ

तुम बिन ना मौसम में

आए बहार

तुम भी आजाओ…..

फिर नयन उन्माद छाया

>> Thursday, February 12, 2009



प्रेम की ऋतु फिर से आई
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन में
रूप रस मदमा रहीं----
प्रेम की मदिरा की गागर
विश्व में ढलका रही
फिर पवन का दूत लेकर
प्रेम का पैगाम आया-----
टूटी है फिर से समाधि
आज इक महादेव की
काम के तीरों से छलनी
है कोई योगी-यति
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
करते हैं नर्तन खुशी से
देव मानव सुर- असुर
‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे
प्रेम रस में सब हैं चूर
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहायाप्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--

कौन हो तुम…

>> Saturday, February 7, 2009

कौन हो तुम…
बता दो……
मैं जानना चाहती हूँआकर्षण की डोरी
क्यों फेंक रहे हो?
मैं इसमें बँधती जा रही हूँ
बहुत कुलबुला रही हूँ
सम्मोहन का जाल
क्यों बुन रहे हो?
ये मुझे कसता जा रहा है
मैं इसमें कसमसा रही हूँप्रेम की मदिरा
क्यों बहा रहे हो
ये मुझे मदहोश कर रही है
मैं इसमें डूबती जा रही हूँतुम्हारे सम्मोहन ने मुझे
परवश कर दिया है
दीन और कातर बना दिया हैमैं अपनी सुध-बुध
अपने होशोहवास
सब खो बैठी हूँतुम्हारे ही ध्यान में
हर पल डूबी रहती हूँतुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देताऐ दोस्त!
मुझे इतना ना सताओ
मेरी दशा पर
कुछ तो तरस खाओसम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ

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