मेरे अनुभव को अपनी प्रतिक्रिया से सजाएँ

दीपावली

>> Saturday, October 25, 2008


दीपावली नाम है प्रकाश का
रौशनी का खुशी का उल्लास का
दीपावली पर्व है उमंग का प्यार का
दीपावली नाम है उपहार का
दीवाली पर हम खुशियाँ मनाते हैं
दीप जलाते नाचते गाते हैं
पर प्रतीकों को भूल जाते हैं ?
दीप जला कर अन्धकार भगाते हैं
किन्तु दिलों में -
नफरत की दीवार बनाते है ?
मिटाना ही है तो -
मन का अन्धकार मिटाओ
जलाना ही है तो -
नफ़रत की दीवार जलाओ
बनाना ही है तो -
किसी का जीवन बनाओ
छुड़ाने ही हैं तो -
खुशियों की फुलझड़ियाँ छुड़ाओ
प्रेम सौहार्द और ममता की
मिठाइयाँ बनाओ ।
यदि इतना भर कर सको आलि

तो खुलकर मनाओ दीवाली

त्योहारों का मौसम

>> Monday, October 20, 2008


लो आगया फिर से
त्योहारों का मौसम
उनके लूटने का
हमारे लुट जाने का मौसम


बाजारों में रौशनी
चकाचौंध करने लगी है
अकिंचनो की पीड़ा
फिर बढ़ने लगी है


धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह


व्यापारी की आँखों में
हज़ारों सपने हैं
ग्राहकों को लूटने के
सबके ढ़ग अपने हैं


कोई सेल के नाम पर
कोई उपहार के नाम पर
कोई धर्म के नाम पर
आकर्षण जाल बिछा रहा है
और बेचारा मध्यम वर्ग
उसमें कसमसा रहा है


उसका धर्म और आस्था
खर्च करने को उकसाते हैं
किन्तु जेब में हाथ डालें तो
आसूँ निकल आते हैं

सजी हुई दुकानें

और जगमगाते मकान

खुशियाँ फैलाते हैं.

जीवन में प्रेम भरा हो तो

गम पास नहीं आते हैं.

सादगी और सरलता से

त्योहारों को मनाओ

धन संम्पत्ति के बल पर

इन्हे दूषित ना बनाओ।


आवाज़: सुनो कहानी: अकेली - मन्नू भंडारी की कहानी

>> Wednesday, October 15, 2008

आवाज़: सुनो कहानी: अकेली - मन्नू भंडारी की कहाणी

हिन्दयुग्म अपने पाठकों को प्रसिद्ध कहानियाँ भी सुनवाता है. इसी श्रंखला में सुनिए मन्नू भंडारी की एक कहानी अकेली और बताईये की आपको यह कहानी कैसी लगी .

जीवन डगर

>> Tuesday, October 7, 2008


जीवन डगर के बीचो-बीच
भीड़ में खड़ी देख रही हूँ --
आते-जाते लोग-
दौड़ते वाहन
कानों को फोड़ते भौंपू
पता नहीं ये सब
कहाँ भागे जा रहे हैं ?

हर कोई दूसरे को
पीछे छोड़
आगे बढ़ जाना चाहता है ।
सबको साथ लेकर चलना
कोई नहीं चाहता है ।
आगे बढ़ना है बस…..
किसी को रौंध कर….
किसी को धकेल कर…..
किसी को पेल कर …
.
जीवन की डगर पर
भीड़ में खड़ी अचानक
अकेली हो जाती हूँ ।
कहीं कोई अपना
करीब नहीं पाती हूँ ।
हर रिश्ता इन वाहनों की तरह
दूर होने लगता है ।
मुझे पीछे धकेल कर
आगे निकल जाता है ।
और दिल में फिर से
एक अकेलापन
घिर आता है ।

जीवन की डगर पर अचानक
इतनी आवाज़ों के बीच
अपनी ही आवाज़
गुम हो जाती है ।
कानों में वाहनों के
चीखते-डराते हार्न
गूँजने लगते हैं
प्रेम की ममता की
आवाज़ें कहीं गुम
हो जाती हैं ।

मैं दौड़-दौड़ कर
हर एक को पुकारती हूँ
किन्तु मेरी आवाज़
कंठ तक ही रूक जाती है ।
लाख कोशिश के बाद भी
बाहर नहीं आती है ।

जीवन डगर पर-
अचानक कोई
बहुत तेज़ी से आता है
और मुझे कुचल कर
चला जाता है ।
मैं घायल खून से लथपथ
वहीं गिर जाती हूँ

किन्तु ……..
ये बहता रक्त-…..
ये कुचली देह….
किसी को दिखाई नही देती ।
जीवन की डगर में
मेरी आत्मा क्षत-विक्षत है
और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

आज का दिन है बड़ा महान

>> Thursday, October 2, 2008


आज दो महान पुरुषों का जन्म दिन है. महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री. दोनों ही महान नेता हुए हैं. दोनों ने अपने -अपने ढंग से राष्ट्र को प्रभावित किया. गाँधी जी संत थे जिन्होंने अपने से अधिक अपने देश के लोगों के विषय मैं सोचा. सारा जीवन एक लंगोटी में बिता दिया क्यूंकि देश के अधिकतर लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं. जाती-पाती के भेद भाव को भुलाया. उनकी विशेषता थी की उन्होंने जो कुछ भी ठीक समझा उसे अपने जीवन में सबसे पहले उत्तार. ऐसे ही नेता का अनुकरण किया जाता हैं किंतु आज के नेता उपदेश औरों के लिए देते हैं और जीवन में कुछ और करते हैं. कहा भी जाता है- पर उपदेश कुशल बहुतेरे.
गाँधी जी और शास्त्री जी दोनों ने ही सादगी का जीवन बिताया. ये दोनों ही नेता लोकप्रिय इसीकारण रहे. आज यदि इनको सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो हम सबको भी जीवन को सरल और सुंदर बनाना चाहिए. समाज अपने आप सुधर जाएगा आप तो सुधरो.
अहिंसा का जो अस्त्र बापू ने दिया वेह न जाने कहाँ खो गया. सारा देश हिंसा की आग में जल रहा है. यह सब देखकर उनकी आत्मा कितनी दुखी होती होगी. आज उनके जन्म दिवस पर क्या हम उनको कोई उपहार नहीं दे सकते? अगर दे सकते हैं तो उनको वचन देन की अपने देश को हिंसा और आतंक से मुक्त करेंगे. यही इन्दोनो को सच्ची श्रधांजलि होगी.जय भारत.

  © Blogger template Shiny by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP