कौन हो तुम…
>> Saturday, February 7, 2009
कौन हो तुम…
बता दो……
मैं जानना चाहती हूँआकर्षण की डोरी
क्यों फेंक रहे हो?
मैं इसमें बँधती जा रही हूँ
बहुत कुलबुला रही हूँ
सम्मोहन का जाल
क्यों बुन रहे हो?
ये मुझे कसता जा रहा है
मैं इसमें कसमसा रही हूँप्रेम की मदिरा
क्यों बहा रहे हो
ये मुझे मदहोश कर रही है
मैं इसमें डूबती जा रही हूँतुम्हारे सम्मोहन ने मुझे
परवश कर दिया है
दीन और कातर बना दिया हैमैं अपनी सुध-बुध
अपने होशोहवास
सब खो बैठी हूँतुम्हारे ही ध्यान में
हर पल डूबी रहती हूँतुम ये प्रेम की बीन
क्यों बजा रहे हो?
इसपर मैं थिरकती जा रही हूँ
इस थिरकन में आनन्द तो है
पर दर्द की लहरों के साथ
जो मुझे पल भर भी
चैन से जीने नहीं देताऐ दोस्त!
मुझे इतना ना सताओ
मेरी दशा पर
कुछ तो तरस खाओसम्मोहन का गीत
अब ना सुनाओ
जहाँ से आए हो
वहीं लौट जाओ

![रंजना [रंजू भाटिया]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNSAuS52Q1_koZq7RTiPaXqebGpMwcHg1IpW_7oLT5AyisXdMENDn6DPmFqCSY82w0Bsv0CHvnTgf0BbkoDfqXMy_UDcRPo5LKUp2tZhDEXYlITXZ4IwMy3VZyidFnjX_1qWTPYSn2l49A/s220/kerHSSw_-3_kkPlI-U4lMaZFGJ_ZmKWaGRg7oiEO__qm-oArXQpiBh9pkellIe3_.jpeg)

15 comments:
बहुत हृदयस्पर्शी और सम्मोहक रचना है
mesmerizing!!
अद्भुत गीत की रचना कर दी है आपने शोभा जी...बहुत खूबसूरत भाव और उतने ही सुंदर शब्द...
नीरज
शोभा जी वाह बहुत रूमानी कविता लिखी है आपने ...बहुत सुद्नर भाव लगे इस के
बहुत सुन्दर रचना है\बधाई स्वीकारें।
कविता है या दिल से निकली
कोई नदी जो
बहा ले जा रही है
मीठे-मधुर शब्दों को
अनंत की तरफ़.
.......
बेहतरीन.
आ भी जाओ या लौट ही जाओ,
मेरा मन क्यों खराब करते हो?
यूँ सताना किसी को ठीक नही,
बेरुखी क्यों जनाब करते हो।।
कविता में सम्मोहन है लेकिन कुछ और कसिए..
अद्भुत रचना..
बहुत सुंदर...
बहुत ही सुंदर कविता, अति सुंदर भाव, धन्यवाद
सुंदर और प्रेम रस से सराबोर,
सुंदर भावों की अभिव्यक्ती.
बधाई स्वीकारिये
सम्मोहन का गीत अब न सुनाओ,
जहाँ से आए हो, वहीं लौट जाओ.
सुंदर, भावपूर्ण कविता.
भाव पूर्ण कविता के लिए साधुवाद.
Bebasi ki kasis kafi gahari dikhayi de rahi hai........
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