>> Saturday, January 31, 2009
तुम कब तक यूँ ही
कमलासना बनी
वीणा- वादन करती रहोगी?
कभी-कभी अपने
भक्तों की ओर
भी तो निहारो
देखो--
आज तुम्हारे भक्त
सर्वाधिक उपेक्षित
दीन-हीन जी रहे हैं
भोगों के पुजारी
महिमा-मंडित हैं
साहित्य संगीत
कला के पुजारी
रोटी-रोज़ी को
भटक रहे हैं
क्या अपराध है इनका-?
बस इतना ही- -
कि इन्होने
कला को पूजा है?
ऐश्वर्य को
ठोकर मार कर
कला की साधना
कर रहे हैं ?
कला के अभ्यास में
इन्होने
जीवन दे दिया
किन्तु लोगों का मात्र
मनोरंजन ही किया ?
माँ!
आज वाणी के पुजारी
मूक हो चुके हैं
और वाणी के जादूगर
वाचाल नज़र आते हैं
आज कला का पुजारी
किंकर्तव्य-मूढ़ है
कृपा करो माँ--
राह दिखाओ
अथवा ----
हमारी वाणी में ही
ओज भर जाओ
इस विश्व को हम
दिशा-ग्यान कराएँ
भूले हुओं को
राह दिखाएँ
प्रान्त के नाम पर
लड़ने वालों को
सही राह दिखाएँ
तुमसे बस आज
यही वरदान पाएँ
7 comments:
maa sarasvati aapki har manokaamna poorn kare sunder abhivyakti ke liye bdhaai ye maa kaa vardaan hai ki aaj aap itne sunder shabad likh paa rahe hain
नमन शोभा जी आपको इस सुंदर रचना के लिए...गदगद कर दिया आपने...
नीरज
शोभा जी बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने.
धन्यवाद
सच्चे पुजारी तो बस दाल रोटी ही तक सीमित रहते हैं..वाकी जो लूट है वह तो कहने को पुजारी हैं वैसे व्यापारी हैं. कला के पुजारी भी बिना व्यवसायिक बने देसी घी नहीं चख सकते.... सशक्त रचना के लिये बधाई
Dil Ki Baat Kah Di Aapne...
ma ka ashirwad hi to hai jo hame ajj blog tak le aayaa
ve krupa barsaati hai sada
hameshaa ki tarah
sirf ham hi hai jo sadhnon ki chah me
vastvikta ko najar andaz kar dete hain
शोभा जी, आज कल हर कोई लक्ष्मी के पीछे पडा है. मैने कही सुना है कि जहा लक्ष्मी होती है वहा सरस्वती नही होती
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