बच्चन जी की पुन्य तिथि पर
>> Saturday, January 17, 2009
प्रिय पाठकों
कल हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन जी की पुन्य तिथि है। उनकी लिखी कुछ पंक्तियाँ मुझे बहुत प्रिय हैं। आप भी इनका रसास्वादन कीजिए-
भावुकता अंगूर लता से
खींच कल्पना की हाला
कवि साकी बनकर आया है,
भरकर कविता का प्याला।
कभी न कणभर खाली होगा
लाख पिए पीने वाला
पाठक गण हैं पीने वाले
पुस्तक मेरी मधुशाला
( मधुशाला )
इस पार प्रिये मधु है, तुम हो
उस पार ना जाने क्या होगा
जग में रस की नदियाँ बहतीं
रसना दो बूँदें पाती है
जीवन की झिलमिल सी झाँकी
नयनों के आगे आती है
स्वर तालमयी वीणा बजती
मिलती है बस झंकार मुझे
मेरे सुमनों की गंध कहीं
यह वायु उड़ा लेजाती है
ऐसा सुनता उसपार प्रिये
ये साधन भी छिन जाएँगें
तब मानव की चेतनता का
आधार न जाने क्या होगा ?
और अँधेरे का दीपक से -
है अँधेरी रात पर, दीपक जलाना कब मना है ?
कल्पना के हाथ से, कमनीय मन्दिर जो बना था.
भावना के हाथ ने, जिसमें वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से, था जिसे रूचिकर बनाया,
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो तना था,
ढह गया वह तो जुटा कर, ईंट,पत्थर, कंकड़ों से,
एक अपनी शान्ति की , कुटिया बनाना कब मना है ?
11 comments:
शोभा जी,
मैं भी बच्चन जी की मधुशाला का जबरदस्त प्रशंसक हूँ.
धन्यवाद। अच्छी पंक्तियां/कविताएं उपलब्ध कराईं।
यहाँ बांटने का शुक्रिया....आपने अमिताभ की आवाज में उनकी कविता की पाठ सुना है .HMV ने सीरीज़ निकाली है
धन्यवाद....भूली बिसरी पंक्तियां याद कराने के लिए।
शोभा जी आप भी कविताएं लिखती होंगी। इन्हें प्रकाशित होने के लिए भेजा जाए। यदि यदि पत्रिकाओं के बारे में जानकारी चाहिए तो इस ब्लांग पर आइये।
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बहुत बहुत शुर्क्रिया इनको यहाँ देने का शोभा जी
हम तक लाने का बहुत बहुत धन्यवाद, बहुत सुंदर कविता है
यहाँ बांटने का बहुत बहुत शुर्क्रिया..धन्यवाद.
बहुत बहुत शुर्क्रिया इनको यहाँ देने का शोभा जी
शुक्रिया शोभा जी ! बच्चन के काव्य रस का आस्वादन कराने के लिए -बच्चन जीवन के प्रति अक्षुण आशा और विश्वास के प्रेरक कवि रहे हैं ! उन्हें शत शत नमन !
वाह वाह...
बच्चन जी तो बच्चन जी थे..... कमाल..
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