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फिर नयन उन्माद छाया

>> Thursday, February 12, 2009



प्रेम की ऋतु फिर से आई
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आयाफिर खिलीं कलियाँ चमन में
रूप रस मदमा रहीं----
प्रेम की मदिरा की गागर
विश्व में ढलका रही
फिर पवन का दूत लेकर
प्रेम का पैगाम आया-----
टूटी है फिर से समाधि
आज इक महादेव की
काम के तीरों से छलनी
है कोई योगी-यति
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
करते हैं नर्तन खुशी से
देव मानव सुर- असुर
‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे
प्रेम रस में सब हैं चूर
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहायाप्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--

10 comments:

परमजीत सिहँ बाली February 12, 2009 at 1:54 PM  

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
बहुत सुन्दर लिखा है--

"आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया-"

Arvind Mishra February 12, 2009 at 4:15 PM  

सर्वं प्रेममयम जगत ! बढिया कविता !

रंजना February 12, 2009 at 8:37 PM  

""आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया""

वाह ! वाह ! वाह ! अद्वितीय !
राष्ट्रीयता प्रेम रंग में रंगी हुई...अद्भुत......इस सुंदर गीत को होंठ बरबस ही गुनगुना उठे.....लाजवाब.......

राज भाटिय़ा February 12, 2009 at 11:06 PM  

बहुत सुंदर, अगर हम सब नफ़रत को भुल कर, ऊंच नीच को भुल कर एक हो जाये तो दुनिया मै सब से ऊपर हमीं हो.
धन्यवाद इस कविता के लिये

राकेश खंडेलवाल February 12, 2009 at 11:10 PM  

सुन्दर भाव संयोजन

समय चक्र February 14, 2009 at 6:50 PM  

आपकी चिठ्ठे की चर्चा समयचक्र पर
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : वेलेंटाइन, पिंक चडडी, खतरनाक एनीमिया, गीत, गजल, व्यंग्य ,लंगोटान्दोलन आदि का भरपूर समावेश

प्रदीप मानोरिया February 14, 2009 at 11:06 PM  

बहुत खूबसूरत अल्पना जी
कविता भी बहुत अच्छी और आपकी मधुर आवाज़ भी

Asha Joglekar February 15, 2009 at 4:45 PM  

बहुत ही सुंदर कविता है । प्रेम दिन के लिये सर्वथा योग्या । और अंतिम तो बस कमाल ।
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--

Dileepraaj Nagpal February 15, 2009 at 10:13 PM  

Bahu Khoob. Prem Ke Utsav M Doobe, Prem Ras Me sab Hain coor...Badhayi

Anonymous February 21, 2009 at 3:40 PM  

GREAT ,,piece of poetry.

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