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केवल सबला हो

>> Sunday, March 8, 2009


नारी तुम....
केवल सबला हो
निमर्म प्रकृति के फन्दों में

झूलती कोई अर्गला हो ।

नारी तुम...
केवल सबला हो ।


विष देकर अमृत बरसाती

हाँ ढ़ाँप रही कैसी थाती ।
विषदन्त पुरूष की निष्ठुरता
करूणा के टुकड़े कर जाती
विस्मृति में खो जाती ऐसे
जैसे भूला सा पगला हो
नारी तुम....
केवल सबला हो


कब किसने तुमको माना है
कब दर्द तुम्हारा जाना है
किसने तुमको सहलाया है
बस आँसू से बहलाया है
जिसका भी जब भी वार चला
वह टूट पड़ा ज्यों बगुला हो ।
नारी तुम--
केवल सबला हो
तुम दया ना पा ठुकराई गई
पर फिर भी ना गुमराह हुई
इस स्नेह रहित निष्ठुर जग में
कब तुमसी करूणा-धार बही ?
जिसने तुमको ठुकराया था
उसके जीवन की मंगला हो ।
नारी तुम --
केवल सबला हो
कब तक यूँ ही जी पाओगी ?
आघातों को सह पाओगी ?
कब तक यूँ टूटी तारों से
जीवन की तार बजाओगी ?
कब तक सींचोगी बेलों क
उस पानी से जो गंदला हो ?
नारी तुम ---
केवल सबला हो
लो मेरे श्रद्धा सुमन तम्हीं
कुछ तो धीरज पा जाऊँ मैं
अपनी आँखों के आँसू को
इस मिस ही कहीं गिराऊँ मैं
तेरी इस कर्कष नियती पर
बरसूँ ऐसे ज्यों चपला हो ।
नारी तुम --
केवल सबला हो
मेरी इच्छा वह दिन आए
जब तू जग में आदर पाए ।
दुनिया के क्रूर आघातों से
तू जरा ना घायल हो पाए
तेरी शक्ति को देखे जो
तो विश्व प्रकंपित हो जाए ।
यह थोथा बल रखने वाला
नर स्वयं शिथिल-मन हो जाए ।
गूँजे जग में गुंजार यही-
गाने वाला नर अगला हो
नारी तुम....
केवल सबला हो ।
नारी तुम केवल सबला हो ।

7 comments:

श्रद्धा जैन March 8, 2009 at 10:57 AM  

Aaj woman's day par aapki likhi hui kavita padhi

meri ichhcha hai tu aadar paaye
bahut achhi lagi aapki rachna

Happy woman's day

Unknown March 8, 2009 at 12:21 PM  

शोभा जी महिला दिवस की बधाई और " केवल सबला हो" अच्छी कविता है । विषयगत है ।

Anonymous March 8, 2009 at 1:00 PM  

bahut sundar rachana khas kar 2nd stnaza bahut bha gaya,nari divas mubarak,aur haa wo sidebaar mein kabhi kabhi kavita bahut mithi mithi hai badhai.

राज भाटिय़ा March 8, 2009 at 4:40 PM  

अच्छी रचना
धन्यवाद


आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

Smart Indian March 9, 2009 at 6:56 AM  

Excellent poem!
...या देवी सर्व भूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ March 9, 2009 at 8:11 AM  

आपकी कविता का यह तेवर बहुत भाया


विषदंत पुरुष की निष्ठुरता
करुणा के टुकड़े कर जाती...
....जैसे भूला-सा पगला हो.
सफल अभिव्यक्ति

Rajesh March 9, 2009 at 5:28 PM  

Happy Woman's Day...

Aap ki sabhi icchhayen puri ho Shobhaji....

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