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मेरा परिचय

>> Saturday, March 21, 2009

मैं तुम पर आश्रित नहीं
स्वयं सिद्धा हूँ

तुम्हारे स्नेह को पाकर
ना जाने क्यों
कमजोर हो जाती हूँ
स्वयं को बहुत असहाय पाती हूँ

शायद इसलिए
तुम्हारे हर स्पर्ष में
प्रेम की अनुभूति होती है

उस प्रेम को पाकर
मैं मालामाल हो जाती हूँ
और अपनी उस दौलत पर
फूली नहीं समाती हूँ

अपनी इच्छा से
अपने को पराश्रित
और बंदी बना लेती हूँ

किन्तु तुम्हारा अहंकार
बढ़ते ही
मेरी जंजीरें स्वयं
टूटने लगती हैं

मेरी खोई हुई शक्ति
पुनः लौट आती है
और मैं आत्म विश्वास से भर
हुँकारने लगती हूँ

मेरी कोमलता
मेरी दुर्बलता नहीं
मेरा श्रृंगार है

यह तो तुम्हें
सम्मान देने का
मेरा अंदाज़ है

वरना नारी
कब किसी की मोहताज़ है ?

18 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन March 27, 2009 at 4:56 PM  

अच्छी कविता है.

अनिल कान्त March 27, 2009 at 5:00 PM  

behtreen rachna hai ...dil ke bhavon ko bahut achchhe se prastut kiya hai

Anonymous March 27, 2009 at 5:01 PM  

bahut achchi saarthak kavita haen

अविनाश वाचस्पति March 27, 2009 at 5:02 PM  

नारी के लिए तो

बनाया गया सजा

ताज (महल) है।

रंजू भाटिया March 27, 2009 at 5:09 PM  

वरना नारी कब किस की मोहताज है बिलकुल सही बात कही आपने शोभा .बहुत ही सुन्दर लफ्जों में आपने इस को व्यक्त किया

Ashish Khandelwal March 27, 2009 at 5:23 PM  

मेरी खोई हुई शक्ति
पुनः लौट आती है..

लाजवाब प्रस्तुतीकरण..

Ashok Pandey March 27, 2009 at 5:24 PM  

बहुत अच्‍छी कविता है शोभा जी, बहुत अच्‍छे भाव हैं। नारी के व्‍यक्तित्‍व और सोच का बढि़या परिचय दिया गया है। आज बड़े दिनों बाद आपकी रचना पढ़ पा रहा हूं, बहुत खुशी हुई।

महेन्द्र मिश्र March 27, 2009 at 6:18 PM  

शोभाजी
बहुत ही बढ़िया रचना और भावाभिव्यक्ति सुन्दर लगी. आभार .

संगीता पुरी March 27, 2009 at 11:39 PM  

बहुत अच्‍छे भाव ... सुदर अभिव्‍यक्ति ।

योगेन्द्र मौदगिल March 29, 2009 at 2:35 PM  

वाह अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकार करें

निर्मला कपिला March 30, 2009 at 9:04 AM  

bahut hi achhi kavita hai apki kalam kisi comment ki mohtaz nahi hai fir bhi kahe bina raha nahi jata ati sunder bdhai

Science Bloggers Association March 30, 2009 at 10:37 AM  

सीधे शब्‍दों में सही बात।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी March 30, 2009 at 4:24 PM  

मेरी कोमलता
मेरी दुर्बलता नहीं
मेरा श्रृंगार है

यह तो तुम्हें
सम्मान देने का
मेरा अंदाज़ है

वरना नारी
कब किसी की मोहताज़ है ?



इतना सब-कुछः तो लिख दिया अब हम्रारे लिखने लायक कुछ नहीं......

Mumukshh Ki Rachanain March 31, 2009 at 7:38 AM  

बहुत ही बढ़िया कविता.

भावाभिव्यक्ति सुन्दर लगी.

नारी के व्‍यक्तित्‍व और सोच का बढि़या परिचय दिया .

सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें.

Alpana Verma April 3, 2009 at 2:20 AM  

मेरी कोमलता ,दुर्बलता नहीं मेरा श्रृंगार है..कितनी अच्छी बात कही है आपने!
बहुत ही सुन्दर कविता लगी.

सम्पूर्ण safal भावाभिव्यक्ति

sandhyagupta April 3, 2009 at 11:52 AM  

Achchi lagi aapki kavita.Badhai.

RAJ SINH April 4, 2009 at 11:09 AM  

shobhajee,
aatmvishwas kee uttam abhivyakti .

aapko hindyugm par mere sanyojan 'RAMAMI RAMAM' ko sun aanand mila protsahit hoon . dhanyavad.

raj sinh 'raku'

Mohinder56 June 9, 2009 at 4:53 PM  

नारी शक्ति जताने का अन्दाज पसंद आया

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