अंदाज़ अपना-अपना
>> Friday, April 10, 2009
प्यार की प्यास तो दोनो को थी
एक अतृप्त हो भटकता रहा
एक ने अपनी मंज़िल पा ली
रिश्तों के मरूस्थल
दोनो की राहों में थे
एक सूखी रेत से टकराता रहा
एक ने स्नेह की गागर छलका ली।
मर्यादाओं के काँटे
दोनो के जीवन में थे
एक बबूल बन चुभता रहा
एक ने फूलों से डाल सजा ली
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
ये अपना-अपना अंदाज़ नहीं तो
और क्या था शुभी
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
22 comments:
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास भुझा ली ....
बहुत खूबसूरत लगी आपकी ये रचना
बढियां लगे कविता -कुछ लोग भले प्यासे रह जायं ओस से प्यास नहीं बुझा सकते !
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
waah bahut hi sunder
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
waah bahut hi sunder
आपकी ये रचना बहुत खूबसूरत लगी ....
आपकी ये रचना बहुत खूबसूरत लगी ....
differences in perspective make lives widely different, ture.
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली................
बहुत खूब .
स्नेह की रिक्तता
दोनो का नसीब बनी
एक दरिया किनारे प्यासा रहा
एक ने ओस से प्यास बुझा ली
--बहुत ही सुन्दर रचना.
शोभा जी,
मर्यादाओं के काँटे
दोनो के जीवन में थे
एक बबूल बन चुभता रहा
एक ने फूलों की ड़ाल सजा ली
इन पंक्तियों ने अकर्मण्यता का दोष प्रारब्ध को दिये जाने वाले लोगों को नाखुश जरूर कर दिया होगा और वही एक कवि की सफलता है.
रचना अपने मक़सद में कामयाब है, बधाई.
मुकेश कुमार तिवारी
सत्य कहा.........प्यार में हर कोई अपनी अपनी राह लेट है, जीवन कोई अनबूझ पहेली ही तो है, बहुत कुछ कह गयी है ये कविता..............लाजवाब
रूमानी जज्बातों से लबरेज एक खूबसूरत नज्म। बधाई।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
एक ने नसीबों को दोषी ठहराया
एक ने कर्म की राह थाम ली।
Bus yahi to jeevan ka sutra hai, karm karte raho, fal apne aap hi milte rahenge
nasib me jiske jo likha tha....narayan narayan
यही अंदाज लोगों की पहचान होता है।
बहरहाल, सुन्दर कविता, बधाई।
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खुशियों का विज्ञान-3
ऊँट का क्लोन
shoba ji ,
main kya kahun , itni behtar rachana main bahut kam padhi hai .. man trupt ho gaya ji ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
जीवन की दो भिन्न सोचों को आपने बहुत खूबसूरती से कविता में पिरो दिया है। बधाई स्वीकारें।
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TSALIIM.
-SBAI-
Atyant sundar abhivyakti.Badhai.
आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा है।
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सम्मोहन के यंत्र
5000 सालों में दुनिया का अंत
behtar///////
AAPKA BHI ANDAAJ E BAYAA AOUR HE>
bahut saandar hai its truly mind blowing
sahi kaha hai aapne....apna apna nazariya hota hai !
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