त्योहारों का मौसम
>> Monday, October 20, 2008
त्योहारों का मौसम
उनके लूटने का
हमारे लुट जाने का मौसम
बाजारों में रौशनी
चकाचौंध करने लगी है
अकिंचनो की पीड़ा
फिर बढ़ने लगी है
धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह
व्यापारी की आँखों में
हज़ारों सपने हैं
ग्राहकों को लूटने के
सबके ढ़ग अपने हैं
कोई सेल के नाम पर
कोई उपहार के नाम पर
कोई धर्म के नाम पर
आकर्षण जाल बिछा रहा है
और बेचारा मध्यम वर्ग
उसमें कसमसा रहा है
उसका धर्म और आस्था
खर्च करने को उकसाते हैं
किन्तु जेब में हाथ डालें तो
आसूँ निकल आते हैं ।
सजी हुई दुकानें
और जगमगाते मकान
खुशियाँ फैलाते हैं.
जीवन में प्रेम भरा हो तो
गम पास नहीं आते हैं.
सादगी और सरलता से
त्योहारों को मनाओ
धन संम्पत्ति के बल पर
23 comments:
सुंदर विचार
bahut achi kavita hai shobha ji...
अच्छी कविता
धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह
seedhee sachchi baat kitni saralta sundarta se aapne kah di.man mugdh ho gaya.
bahut bahut sundar likha hai aapne.
अच्छी है कविता सच्ची बात कहती है
बाजारों में रौशनी
चकाचौंध करने लगी है
अकिंचनो की पीड़ा
फिर बढ़ने लगी है
धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह
bahut hi sachhi baat shaobha ji, bahut hi sateek rachna
isey dooshit na banao. bahut achha
सही कहा आपने. उल्लास, संयम और भाईचारे की परम्परा अब सिर्फ़ फिजूलखर्ची और दिखावा ही रह गयी है.
sunder rachana
regards
बाजार के शिकंजे से बचना नामुमकिन होता जा रहा है, बहुत सुंदर ढ़ंग से आपने इसके चक्रव्यूह को समझाया है-
बाजारों में रौशनी
चकाचौंध करने लगी है
अकिंचनो की पीड़ा
फिर बढ़ने लगी है
त्यौहार मय हो गया मन
कभी-कभी जान बूझ कर भी लुटने में मजा आता है। इन त्योहारों की फ़ितरत ही ऐसी होती है।
हम जानते हैं 'सेल' की हकीकत,
पर दिल को खुश करने का ए मौका अच्छा है।
(चचा गालिब से क्षमा याचना के साथ।)
व्यापारी की आँखों में
हज़ारों सपने हैं
ग्राहकों को लूटने के
सबके ढ़ग अपने हैं
अच्छी कविता
उसका धर्म और आस्था
खर्च करने को उकसाते हैं
किन्तु जेब में हाथ डालें तो
आसूँ निकल आते हैं
Hamesha ki tarah achchi rachana .badhai apko.
धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह
बहुत ही सुन्दर ओर मन भावन कविता के लिये
धन्यवाद
बेहद सुन्दर..फॉन्ट कलर बदलिये कमेंट का.
Bazar ka varnan bhi kavita men itne achhe dhang se kiya ja sakta hai yah sabit kar diya aapne. Lootane aur lutane ka mousam bataya tyoharon ke mousam ko. bahut khoob.
"bhut sunder abhevyktee"
regards
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति समेटे रचना.
समीर जी की बात पर ध्यान दें... कमेंट्स का फ़ोट कलर बदले...
धनी का उत्साह
और निर्धन की आह
सभी ढ़ूँढ़ रहे हैं
खुशियों की राह
Festivals ke aane ke saath hi yah rookh dekhne ko milta hai zindagi ka. Dhani ho ya Nirdhan, sabhi apni takat ke dayare mein rah kar apni apni khusiyan khoj hi lete hai. Aakhir, tyoharon ki yahi to anand hai hamare Bharat des mein.
happy dipawali
with your
positive lines
दीपावली नाम है
प्रकाश का
रौशनी का
खुशी का
उल्लास का
दीपावली पर्व है
उमंग का
प्यार का
उसका धर्म और आस्था
खर्च करने को उकसाते हैं
किन्तु जेब में हाथ डालें तो
आसूँ निकल आते हैं ।
nice expression
Happy dipawali
दीवाली पर हम खुशियाँ मनाते हैं
दीप जलाते नाचते गाते हैं
पर प्रतीकों को भूल जाते हैं ?
दीप जला कर अन्धकार भगाते हैं
किन्तु दिलों में -
नफरत की दीवार बनाते है
खूब लिखा है आपने. बधाई. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
बहुत खूब शोभा जी, बहुत ही सटीक शब्द और व्यंग से परिपूरन.
आपकी कलम निरंतर चलती रहे यही प्रार्थना है.
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