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जीवन डगर

>> Tuesday, October 7, 2008


जीवन डगर के बीचो-बीच
भीड़ में खड़ी देख रही हूँ --
आते-जाते लोग-
दौड़ते वाहन
कानों को फोड़ते भौंपू
पता नहीं ये सब
कहाँ भागे जा रहे हैं ?

हर कोई दूसरे को
पीछे छोड़
आगे बढ़ जाना चाहता है ।
सबको साथ लेकर चलना
कोई नहीं चाहता है ।
आगे बढ़ना है बस…..
किसी को रौंध कर….
किसी को धकेल कर…..
किसी को पेल कर …
.
जीवन की डगर पर
भीड़ में खड़ी अचानक
अकेली हो जाती हूँ ।
कहीं कोई अपना
करीब नहीं पाती हूँ ।
हर रिश्ता इन वाहनों की तरह
दूर होने लगता है ।
मुझे पीछे धकेल कर
आगे निकल जाता है ।
और दिल में फिर से
एक अकेलापन
घिर आता है ।

जीवन की डगर पर अचानक
इतनी आवाज़ों के बीच
अपनी ही आवाज़
गुम हो जाती है ।
कानों में वाहनों के
चीखते-डराते हार्न
गूँजने लगते हैं
प्रेम की ममता की
आवाज़ें कहीं गुम
हो जाती हैं ।

मैं दौड़-दौड़ कर
हर एक को पुकारती हूँ
किन्तु मेरी आवाज़
कंठ तक ही रूक जाती है ।
लाख कोशिश के बाद भी
बाहर नहीं आती है ।

जीवन डगर पर-
अचानक कोई
बहुत तेज़ी से आता है
और मुझे कुचल कर
चला जाता है ।
मैं घायल खून से लथपथ
वहीं गिर जाती हूँ

किन्तु ……..
ये बहता रक्त-…..
ये कुचली देह….
किसी को दिखाई नही देती ।
जीवन की डगर में
मेरी आत्मा क्षत-विक्षत है
और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

32 comments:

makrand October 7, 2008 at 10:44 PM  

और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

shobha ji bahut umda rachana
u got power to explore thoughts to reality
great writer
we just need to follow
i write something
need u r guidance
regards

Dr. Ashok Kumar Mishra October 7, 2008 at 11:04 PM  

shobhaji,
badi prakhar abhivyakti hai. jeevan key sach ko aapney achchey dhang sey likha hai.

किन्तु ……..
ये बहता रक्त-…..
ये कुचली देह….
किसी को दिखाई नही देती ।
जीवन की डगर में
मेरी आत्मा क्षत-विक्षत है
और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

maine apney blog per ek lekh -kitni ladaiyein ladeingi ladkiyan-likha hai.aapki rai mere liye badi mahatavpurn hogi.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

श्रीकांत पाराशर October 7, 2008 at 11:26 PM  

Shobhaji, bahut bhavpoorn lagi aapki kavita.

राज भाटिय़ा October 8, 2008 at 2:38 AM  

बहुत ही सुन्दर है यह आप की सभी कविताये सभी भाव पुरण है, गहरे भाव, धन्यवाद

Udan Tashtari October 8, 2008 at 6:23 AM  

सुन्दर है ..वाह!!!

प्रशांत मलिक October 8, 2008 at 6:53 AM  

nice

seema gupta October 8, 2008 at 9:54 AM  

मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

"bhut achee bhav hai, or antt mey jo umeed hai vo srahneey hai"

regards

makrand October 8, 2008 at 11:33 AM  

thanks shobha ji
visiting and encourging me
i do try to write better
again
thanks people like u atleast read my dustbin
regards

डॉ .अनुराग October 8, 2008 at 2:23 PM  

रेट रेस है शोभा जी.....तो मानवीय मूल्य तो पीछे छूटेगे ही ! अब सच में यही जीवन है.

Ashok Pandey October 8, 2008 at 9:48 PM  

यह आशावाद जीवन डगर के तमाम झंझावातों से जुझने के लिए जरूरी है..
सुंदर व भावपूर्ण कविता।

प्रदीप मानोरिया October 9, 2008 at 8:12 PM  

हमेशा की तरह आपकी सुंदर रचना पढी धन्यबाद मेरे ब्लॉग पर आपका आना बहुत समय से नहीं हो रहा कुछ कविताएं लिखी है जो आपके मार्गदर्शन की बाट जोह रहीहैं कृपया समय निकाल कर पधारे

Arvind Mishra October 9, 2008 at 9:11 PM  

प्रेरणास्पद !

मीत October 10, 2008 at 11:34 AM  

हर रिश्ता इन वाहनों की तरह
दूर होने लगता है ।
मुझे पीछे धकेल कर
आगे निकल जाता है ।
और दिल में फिर से
एक अकेलापन
घिर आता है ।

it's a real truth...
keep it up

अभिषेक मिश्र October 10, 2008 at 12:22 PM  

Pahli baar aapke blog par aaya. kafi achi rachana aur blog ka presentation bhi anutha hai. Laajawab.

रविकांत पाण्डेय October 10, 2008 at 1:06 PM  

ये बहता रक्त-…..
ये कुचली देह….
किसी को दिखाई नही देती ।
जीवन की डगर में
मेरी आत्मा क्षत-विक्षत है
और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

शोभा जी, अच्छा लिखा है। विषम परिस्थितियों में भी आशा को बचाये रखना मनुष्य के लिये आवश्यक है

अनुपम अग्रवाल October 10, 2008 at 3:38 PM  

आपकी दिल छूने वाली कविता पढ़कर मेरे मन में विचार आया कि ;
जीवन डगर के बीचों बीच
कोई जरूर राहें देगा सींच |
कोई जरूर आएगा घावों को सहलाने वाला
दिल से दिल को बहलाने वाला
जिसे दिखाई देगा बहता रक्त ,कुचली देह
और भर देगा जीवन में बहुत सा नेह

प्रदीप मानोरिया October 10, 2008 at 9:24 PM  

सुंदर कविता के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपके मेरे ब्लॉग पर पधारने का धन्यबाद कृप्याप उन: पधारे मेरी नई रचना मुंबई उनके बाप की पढने हेतु सादर आमंत्रण

kumar Dheeraj October 11, 2008 at 6:21 PM  

शोभा जी मै आपकी कविताई सोच का कायल हो गया हूं । मैने आपका ब्लांग पढ़ा ,अभिभूत हो गया हूं । मैने दिनकर और भगत सिंह के लेख पढ़े । सचमुच दिल खुश कर दिया आपने । इस तरह का विचार जरूर भेजे ।
बहुत अच्छा लगा । आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

BrijmohanShrivastava October 12, 2008 at 2:13 PM  

क्या ऐसा नहीं लगता कि रचना कुछ ज़्यादा बड़ी हो गई =आप बहुत ही बडी बडी रचनाये लिखती है -सलाह देने लायक तो मैं अपने आप को नहीं समझता परन्तु इस रचना का सार कुछ कम लेने में भी हो सकता था -आज कल फास्ट फ़ूड के युगमें पाठक बडी रचनाओं पर सरसरी नजर डालते हैं और बहुत बढ़िया लिख कर अपने ब्लॉग पर आने का एक गुप्त निमंत्र्ण दे जाते है

Dr. Ashok Kumar Mishra October 14, 2008 at 1:13 AM  

shobhaji,
आपने बहुत अच्छा िलखा है । अापकी प्रितिक्र्या को मैने अपने ब्लाग पर िलखे नए लेख में शािमल िकया है । आप चाहें तो उसे पढकर अपनी प्रितिक्रया देकर बहस को आगे बढा सकते हैं ।

http://www.ashokvichar.blogspot.comं

प्रवीण पराशर October 14, 2008 at 3:09 PM  

शोभा जी आपका बेहद शुक्रगुजार हूँ , की आप ने मेरी तारीफ मैं लिखा , आप के जैसे अनुभवी ,और गुनी लोग जब अच्छा कहते हैं तो खुशी होती है , बैसे मैं अभी २२ बर्ष का हूँ , सोचता था की इतना गंभीर लिखूंगा तो कोई पसंद करेगा या नही पर आप जैसे लोग अच्छा कहते हैं , तो अब लिखता रहूँगा | जब आप के ब्लॉग को पढ़ा तो मेरे पास आप के अनुभव के लिए शब्द नही है
मुझे मेरे ब्लॉग के जरिये ही सही पर एक अच्छे अनुभवी इंसान से भेंट हुई आपसे बहुत सीखने को मिलने वाला है धन्यबाद !

hindustani October 16, 2008 at 4:08 PM  

aap bhoot aacha likhte hai.

प्रदीप मानोरिया October 17, 2008 at 7:39 PM  

आपके मेरे ब्लॉग पर आगमन के लिए धन्यबाद कृपया चुनावी दंगल पढने पुन: पधारे
प्रदीप मनोरिया

Vishal Mishra October 18, 2008 at 12:49 PM  

Shobha Ji

kafi achcha likha hai

Vishal Mishra October 18, 2008 at 12:49 PM  

Shobha Ji

kafi achcha likha hai

Vishal Mishra October 18, 2008 at 12:49 PM  

Shobha Ji

kafi achcha likha hai

ilesh October 18, 2008 at 1:38 PM  

और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।

khubsurat...keep it up shobha ji..

अभिषेक मिश्र October 18, 2008 at 6:28 PM  

मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।
Asha hi tojeevan dagar par aage badhne ki himmat deti hai. Regards.

Rajesh October 21, 2008 at 4:23 PM  

Great Shobhaji as usual......
Any subject you select becomes very live and you put the truth of life in your articles.
और मैं आज भी आशावान हूँ ।
मुझे लगता है
कोई अवश्य आयेगा
मेरे घावों को
सहलाने वाला
मुझे राह से
उठाने वाला ।
Ashavaad ki bahot hi achhi misaal. And Shobhaji, zindagi ki yahi reet hai aur yahi sachhai hai pepr jaise aap ne likha hai yahan, asha hi jeevan hai.....

prashant December 10, 2008 at 8:42 AM  

एक अच्छी कविता !

vijay kumar sappatti December 20, 2008 at 11:36 AM  

bahut sundar rachna .ek nayi aasha ko man mein sahejati hui rachana.

badhai..

pls visit my blog for some new poems.

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

vipinkizindagi December 26, 2008 at 4:47 PM  

बहुत सुंदर भाव

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