हिन्दी दिवस
>> Saturday, September 13, 2008
हम सब हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं
जरा सोचें किस बात पर इतरा रहें हैं ?
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है
हिन्दी सरल-सरस भी है
वैग्यानिक और तर्क संगत भी है ।
फिर भी--
अपने ही देश में
अपने ही लोगों के द्वारा
उपेक्षित और त्यक्त है
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जरा सोचकर देखिए
हम में से कितने लोग
हिन्दी को अपनी मानते हैं ?
कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?
अधिकतर तो--
विदेशी भाषा का ही
लोहा मानते है ।
अपनी भाषा को उन्नति
का मूल मानते हैं ?
कितने लोग हिन्दी को
पहचानते हैं ?
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भाषा तो कोई भी बुरी नहीं
किन्तु हम अपनी भाषा से
परहेज़ क्यों मानते हैं ?
अपने ही देश में
अपनी भाषा की इतनी
उपेक्षा क्यों हो रही है?
हमारी अस्मिता कहाँ सो रही है ?
व्यवसायिकता और लालच की
हद हो रही है ।
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इस देश में कोई
फ्रैन्च सीखता है
कोई जापानी
किन्तु हिन्दी भाषा
बिल्कुल अनजानी
विदेशी भाषाएँ सम्मान
पा रही हैं और
अपनी भाषा ठुकराई जारही है ।
मेरे भारत के सपूतों
ज़रा तो चेतो ।
अपनी भाषा की ओर से
यूँ आँखें ना मीचो ।
अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम
आएगी ।
किन्तु अपनी भाषा तो
ममता लुटाएगी ।
इसमें अक्षय कोष है
प्यार से उठाओ
इसकी ग्यान राशि से
जीवन महकाओ ।
आज यदि कुछ भावना है तो
राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।
21 comments:
bilkul thik kaha aapne.. apne hi ghar mein anjaan ho gayi hai hindi
बड़ा सही मसला उठाया है आपने आज-
इस देश में कोई,फ्रैन्च सीखता है, कोई जापानी।
किन्तु हिन्दी भाषा,बिल्कुल अनजानी
विदेशी भाषाएँ सम्मान पा रही हैं और
अपनी भाषा ठुकराई जारही है ।
bhaut khoob
विचारणीय लेख....
बहुत बढि़या
दीपक भारतदीप
aapney bahut achchi kavita likhi hai. hindi ki istithi per meri kutch alag rai hai. us per aapki prtikriya ki pratiksha rahegi
हिन्दी में नियमित लिखें और हिन्दी को समृद्ध बनायें.
हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
एक अकेला देश जहां याद दिलाना पडता है कि हमारी मातृ-भाषा कौन सी है।
जले पर नमक तब पडता है, जब तथाकथित हिंदी उद्धारक अपना भाषण यह कह कर समाप्त करते हैं "लेट अस सेलेब्रेट हिंदी दिवस"
हिन्दी के सन्दर्भ में सुंदर अभिव्यक्ति है बधाई
कृपया गर्व से कहे हमारी भाषा हिन्दी है
धन्यवाद्.
बहुत अच्छा लिखी है. हिंदी दिवस की बधाई.
यही तो हमारी समझ में भी नहीं आता कि आखिर हमारी अस्मिता कहां सो रही है? किस बात की खुशी हम मना रहे हैं? हमारी मातृभाषा आजादी के इतने सालों बाद भी पराधीन है और हम जश्न मना रहे हैं.. कब चेतेंगे हम?
Hindi divas ke avsar per bahot hi pyaari si - hindi prem ki kavita hai shobhaji.
बहुत बढ़िया सामयिकी !
सतीश
हिन्दी को हृदय में उतारती खूबसूरत रचना
धन्यवाद!
bahut aachi kavita likhi hai or sahi prashn uthaya hai ki aakhir hum kyon apni bhasha ko bhoolte ja rahe hai.
shobha ji,
thanks for ur valuable comment on my blog.. thanks again
palak
कितनी शर्म की बात है अपने हिन्दुस्तान मे ही हम लोगो ने विदेशी भाषाओं को सम्मान दे रहे हैं और
अपनी भाषा को अपनाने मे शर्म महसुस करते है ।
आपके खयालात आदरनीय है.
सही विचार।
आज यदि कुछ भावना है तो
राष्ट्र भाषा को अपनाओ बहुत गज़ब की प्रेरणास्पद बात है
फुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें स्वागत है
Mai Manta hu aap ne vo likha vo sai hai but app khudh batayae yhe sochtae time aap ko english ke kitne shabd yaad aayae .. jinki aap ko hindi dhund ni padi.....
Sach bataiyae ga...
ESSA NAHI HAI KI HUM HINDI KO BHUL RAHAE HAI LEKIN SIRF HINDI KE DUM PAR HUM AAGAE BHI KAHA BADH PAA RAHAE HAI..
Kuch galat likha ho to maaf karna. Mujhae jo sai laga vahi likha.
I liked your poem but most of the students speak in hindi only so we are not forgetting hindi
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