यादों की पिटारी
>> Wednesday, September 10, 2008
यादों की पिटारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
कसक सी उठी दिल में
अपने से थी हारी
कैसे कहूँ किससे कहूँ
रात जो गुजारी
खोलकर जो बैठी रात
पहला मोती बचपन की
यादें लेकर आया
आँगन में सोई थी जो
गुड़ियाँ उठा लाया
माँ बाबा संगी साथी
सामने जो आए
जाग उठी लाखों यादें
ओठ मुसकुराए
ले जाओ बचपन तुम
बिटिया मेरी प्यारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
दूजा मोती प्रीत का था
हाथ में जो आया
किरण जाल सपनों का
उसने था बिछाया
पीहू की पुकारों ने
शोर सा मचाया
प्रेम बीन बजने लगी
जादू सा था छाया
कानों में आ बोला कोई
आ जाओ प्यारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
एक-एक मोती ने
यादें सौ जगाई
बिखरी सी मंजूषा
सँभाल मैं ना पाई
पागल दीवानी हो
उनके पीछे धाई
बिखरे मोती, बीती बातें
हाथ में ना आई
यादों की जमीन पर था
एक पल भी भारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
18 comments:
बहुत सुंदर रचना है. सच, अगर यादें न रहती तो हम अपना अस्तित्व कहाँ खोजते?
शोभा जी इसी बात पर एक नज़्म मैंने भी कभी लिखी थी ,आपको पढ़ा तो उसकी याद आयी ....मिलेगी तो पोस्ट करता हूँ कभी....
बहुत खूब शोभा जी
एक-एक मोती ने
यादें सौ जगाई
बिखरी सी मंजूषा
सँभाल मैं ना पाई
पागल दीवानी हो
उनके पीछे धाई
बिखरे मोती, बीती बातें
हाथ में ना आई
यादों की जमीन पर था
एक पल भी भारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
सुन नही पायी अभी शायद यह आपकी आवाज़ में है जल्द ही सुनती हूँ
शोभा जी बहुत सुन्दर रचना हे, लेकिन यादे केसी भी हो इन के बिना भी सुना सा लगता हे
धन्यवाद
सुन्दर..
बहुत सुंदर रचना है। मन को छू गयी।
Achhi lagi rachna.
आपकी आवाज में सुनकर कविता में जैसे जान आ गई। बहुत अच्छा गीत।
स्मृति का भाव पूर्ण अंकन,
मन को छूने वाला.
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आनन्द आ गय- पढ़ने में और ज्यादा सुनने में-वाह!!
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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
Bahut sunder kabita hai Shobha ji
बिखरे मोती, बीती बातें
हाथ में ना आई
यादों की जमीन पर था
एक पल भी भारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
" shobha jee aapke ye yadon kee peetaree sach mey humaree bhee ankh nam kr gyeen"
Regards
पहला मोती बचपन की
यादें लेकर आया
आँगन में सोई थी जो
गुड़ियाँ उठा लाया
सच में बहुत सुंदर...
जरी रहे
एक-एक मोती ने
यादें सौ जगाई
बिखरी सी मंजूषा
सँभाल मैं ना पाई
पागल दीवानी हो
उनके पीछे धाई
बिखरे मोती, बीती बातें
हाथ में ना आई
यादों की जमीन पर था
एक पल भी भारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
यथार्थ चित्रण खूबसूरत पंक्तियाँ आपका जवाव नहीं शोभा जी
सुनना और पढ़ना दोनों अच्छा लगा -प्रभाव्शा्ली प्रस्तुति !
बहुत सुंदर। आपकी आवाज में और भी प्रभावशाली लगती है।
कविता पढने से ज्यादा सुनने मे मजेदार है ।निश्चीत आपकी आवाज मधुर है ।्हमारा भी नमस्कार
पहला मोती बचपन की
यादें लेकर आया
आँगन में सोई थी जो
गुड़ियाँ उठा लाया
माँ बाबा संगी साथी
सामने जो आए
जाग उठी लाखों यादें
ओठ मुसकुराए
ले जाओ बचपन तुम
बिटिया मेरी प्यारी
बिखर गए मोती सारे
आँख हुई भारी
Shobha Ji,
Bahut Sunder , Bahut hi sunder rachna hai ....
Kaha se late hai sabso ke aise phool jo man ko chhoo jate hai..
Ek mshsn kavita..
Regards..
http://dev-poetry.blogspot.com/
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