कुछ क्षणिकाएँ
>> Thursday, January 31, 2008
बिजली की परेशानी पर
जब सवाल हमने उठाया
उन्होने मुसकुरा कर
हमें ही दोषी बताया
बोले-------
यह परेशानी भी
तुम्हारी ही लाई है
सच-सच बताओ-
ये बिजली तुमने
कहाँ गिराई है ?
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तुम्हारी बातें भी अब
दिल तक पहुँच नहीं पाती हैं
बात शुरू होते ही--
बिजली चली जाती है--
प्रतिपल आती -जाती
बिजली से दुःखी हो
हमने बिजली दफ्तर में
गुहार लगाई
विद्युत अधिकारी ने
लाल-लाल आँखें दिखाई
अजीब हैं आप--
हम पर आरोप लगा रहे हैं
अरे हम तो आपका ही
खर्च बचा रहे हैं
इस मँहगाई में
बिजली हर समय आएगी
तो बिजली का बिल देखकर
आप पर------
बिजली नहीं गिर जाएगी ?
बिजली की किल्लत से वो
जरा नहीं घबराते हैं
परिवार को अपने
आस-पास ही पाते हैं
टी वी और कम्प्यूटर को
हँसकर मुँह चिढ़ाते हैं
क्योकिं –
जब भी श्रीमान जी
दफ्तर से आते हैं
बिजली को हरदम
गुल ही पाते हैं
5 comments:
अच्छा है शोभा जी. कुछ ज़्यादा ही किल्लत हो गई है क्या ?? बहरहाल क्षणिकाएँ बढ़िया लगीं, पढ़ कर मज़ा आया. शुक्रिया.
वाह शोभा जी बहुत सही और मजेदार लिखा है आपने..बिजली पर
मज़ा आ गया पढ़ के :)
It seems you are the only person in the world facing the maximum problem towards BIJALEE. Suchmooch, bahot hi badhiya "KSHANIKAYEN" banayi hai aapne "BIJALEE" per. Agar BIJALEE wale ise padh le to khood hi soch mein pad jaye ki kya hamara itna "AATANK" hai is duniya walon per.... Anyways, congratulations on such a beautiful article.
शोभा जी, बिजली के बहाने,आपने न जाने,कहां-कहां पर बिजली गिरा दी.कम शब्दों में,अच्छे भाव व्यक्त किये हॆं.
बिजली कहां गिराई..?
बिजली जाने का गम अब ज्यादा नहीं होगा या जब भी बिजली जायेगी इस कविता को याद कर लिया करेंगे।
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