मेरी आत्मजा
>> Wednesday, February 6, 2008
मेरा प्रिय अंग
आज देती हूँ तुम्हें
सीखें चन्द
नारी समाज की रीढ़
सृष्टि का श्रृंगार है
उसकी कमजोरी
सृष्टा की हार है
अन्याय को सहना
स्वयं अन्याय है
किन्तु परिवार में
त्याग अपरिहार्य है
तू धीर-गम्भीर और
कल्याणी बनना
किसी को दुःख दे
ऐसे सपने मत बुनना
वासना की दृष्टि को
शोलों से जलाना
कभी निर्बलता से
नीर ना बहाना
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
6 comments:
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
वाह वा शोभा जी...बहुत सुंदर रचना...अत्यधिक प्रभाव पूर्ण..
नीरज
बहुत बढ़िया सीख दी आपने .. और अंत में चेतावनी भी!
नारी समाज की रीढ़
सृष्टि का श्रृंगार है
उसकी कमजोरी
सृष्टा की हार है
Waah, kya adbhoot kalpana hai aapki. sachmuch, naari hi samaj ki reedh hai aur uski kamjori uski apni nahi lekin srushta (niyanta) ki haar hai.
and lastly
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना
this is the best advise you have given to a daughter or a lady. Ladki ke hi kayi aur roop bhi nibhane padte hai, beti, patni, maa, grandma and overall a lady above all these relations for the outside world.
Really its very nice.
राजेश जी,नीरज जी और सागर भाई
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद है कि आप तीनों ने मेरी कविता को पढ़ा और सही अर्थ लिया ।
राजेश जी , आपकी टिप्पणी सदा प्रेरणा देती है और उत्साह बढ़ाती है । इसी प्रकार मेरा उत्साह बढ़ाते रहें । सस्नेह
हृदय से कोमल
सबका दुःख हरना
अन्यायी आ जाए तो
शक्ति रूप धरना
बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग पर आया...आपका लेखन भावना और ईमानदारी से ओतप्रोत होता है..अच्छा लगा...बधाई
लड़की हो इसलिए
सदा सुख बरसाना
किन्तु बिटिया--
- बस लड़की ही
मत रह जाना-
बहुत सुद्नर लगी शोभा जी आपकी यह रचना !
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