प्रेम उत्सव
>> Wednesday, February 13, 2008
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आया
फिर खिलीं कलियाँ चमन में
रूप रस मदमा रहीं----
प्रेम की मदिरा की गागर
विश्व में ढलका रही
फिर पवन का दूत लेकर
प्रेम का पैगाम आया-----
आज इक महादेव की
काम के तीरों से छलनी
है कोई योगी-यति
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
करते हैं नर्तन खुशी से
देव मानव सुर- असुर
‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे
प्रेम रस में सब हैं चूर
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहाया
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--
5 comments:
बढ़िया है-लिखते रहें.
beautiful emotions,very nice
अति सुंदर...गज़ब के भाव और शब्द..वाह..वा...
नीरज
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। इसी प्रकार उत्साह बढ़ाते रहें । सस्नेह
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--
Once again you have proved that you are very much concious about the Rashtra Prem. Very rightly said in the above lines, we have to live the life like a family and then and then only its possible to live peacefully in the world with Integrity and peace. Prem ki baarish aur rutu to hamesha aati hi hai per sachha prem usmein hona bahot hi jaroori hai.....
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