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प्रेम की ऋतु फिर से आई

>> Friday, February 12, 2010

प्रेम की ऋतु फिर से आई

फिर नयन उन्माद छाया

फिर जगी है प्यास कोई

फिर से कोई याद आया

फिर खिलीं कलियाँ चमन में

रूप रस मदमा रहीं----

प्रेम की मदिरा की गागर

विश्व में ढलका रही

फिर पवन का दूत लेकर

प्रेम का पैगाम आया-----

टूटी है फिर से समाधि

आज इक महादेव की

काम के तीरों से छलनी

है कोई योगी-यति

धीर और गम्भीर ने भी

रसिक का बाना बनाया—

करते हैं नर्तन खुशी से

देव मानव सुर- असुर

‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे

प्रेम रस में सब हैं चूर

प्रेम की वर्षा में देखो

सृष्टि का कण-कण नहाया

प्रेम रस की इस नदी में

आओ नफ़रत को डुबा दें

एकता का भाव समझें

भिन्नता दिल से मिटा दें

प्रान्तीयता का भाव देखो

राष्ट्रीयता में है समाया--

8 comments:

विनोद कुमार पांडेय February 12, 2010 at 9:28 PM  

शोभा जी बहुत सुंदर भाव..सुंदर रचना..बधाई

डॉ. मनोज मिश्र February 12, 2010 at 10:38 PM  

फिर नयन उन्माद छाया

फिर जगी है प्यास कोई

फिर से कोई याद आया..
jaandaar-shandaar laine..

आओ बात करें .......! February 12, 2010 at 11:43 PM  

प्रेम की वर्षा अविरल
प्रेम की भाषा निर्मल
प्रेम की रचना कोमल
प्रेम की साधना अविचल

दिगम्बर नासवा February 13, 2010 at 4:05 PM  

सुंदर रचना है ... सच है जब प्रेम की रुत आती है तो प्रेम की पुर्वा चलती है .... बसंत भी गीत गाता है ....

KULDEEP SINGH February 13, 2010 at 7:31 PM  

BAHUT BADIYA RACHA APANE

Crazy Codes February 16, 2010 at 11:23 AM  

khubsurat rachna...

Pushpendra Singh "Pushp" February 20, 2010 at 1:05 PM  

प्रेम की ऋतु तो सभी है बेहतरीन प्रस्तुति
बधाई ................

परमजीत सिहँ बाली February 20, 2010 at 4:39 PM  

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।

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