प्रेम की ऋतु फिर से आई
>> Friday, February 12, 2010
प्रेम की ऋतु फिर से आई
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आया
फिर खिलीं कलियाँ चमन में
रूप रस मदमा रहीं----
प्रेम की मदिरा की गागर
विश्व में ढलका रही
फिर पवन का दूत लेकर
प्रेम का पैगाम आया-----
टूटी है फिर से समाधि
आज इक महादेव की
काम के तीरों से छलनी
है कोई योगी-यति
धीर और गम्भीर ने भी
रसिक का बाना बनाया—
करते हैं नर्तन खुशी से
देव मानव सुर- असुर
‘प्रेम के उत्सव’ में डूबे
प्रेम रस में सब हैं चूर
प्रेम की वर्षा में देखो
सृष्टि का कण-कण नहाया
प्रेम रस की इस नदी में
आओ नफ़रत को डुबा दें
एकता का भाव समझें
भिन्नता दिल से मिटा दें
प्रान्तीयता का भाव देखो
राष्ट्रीयता में है समाया--

![रंजना [रंजू भाटिया]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNSAuS52Q1_koZq7RTiPaXqebGpMwcHg1IpW_7oLT5AyisXdMENDn6DPmFqCSY82w0Bsv0CHvnTgf0BbkoDfqXMy_UDcRPo5LKUp2tZhDEXYlITXZ4IwMy3VZyidFnjX_1qWTPYSn2l49A/s220/kerHSSw_-3_kkPlI-U4lMaZFGJ_ZmKWaGRg7oiEO__qm-oArXQpiBh9pkellIe3_.jpeg)

8 comments:
शोभा जी बहुत सुंदर भाव..सुंदर रचना..बधाई
फिर नयन उन्माद छाया
फिर जगी है प्यास कोई
फिर से कोई याद आया..
jaandaar-shandaar laine..
प्रेम की वर्षा अविरल
प्रेम की भाषा निर्मल
प्रेम की रचना कोमल
प्रेम की साधना अविचल
सुंदर रचना है ... सच है जब प्रेम की रुत आती है तो प्रेम की पुर्वा चलती है .... बसंत भी गीत गाता है ....
BAHUT BADIYA RACHA APANE
khubsurat rachna...
प्रेम की ऋतु तो सभी है बेहतरीन प्रस्तुति
बधाई ................
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।
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