हिन्दी से मुलाकात
>> Monday, September 14, 2009
कल रात स्वप्न में
मेरी मुलाकात हिन्दी
से हो गई ।
डरी,सहमी कातर
हिन्दी को देखकर
मैं हैरान सी हो गई ।
मैंने पूछा -
तुम्हारी यह दशा क्यों ?
तुम तो राष्ट्र भाषा हो ।
देश का स्वाभिमान हो ।
हिन्द की पहचान हो ।
यह सुनते ही--
हिन्दी ने कातर नज़रों से
मेरी ओर देखा ।
उसकी दृष्टि में जाने क्या था
कि मैं पानी-पानी हो गई ।
मेरे अन्तर से जवाब आया
जिस देश में राष्ट्र भाषा
की यह दशा हो--
उसे राष्ट्रीय अस्मिता की बातें
करने का क्या अधिकार है ?
जब विदेशी ही अपनानी है
तो इतना अभिनय क्यों ?
हिन्दी-दिवस जैसी औपचारिकताएँ
कब तक सच्चाई पर पर्दा
डाल पाएँगी ?
शर्म से मेरी आँखें
जमीन में गड़ जाती हैं
और चुपचाप आगे बढ़ जाती हूँ ।
किन्तु एक आवाज़
कानों में गूँजती रहती है ।
और बार-बार कहती है -
हिन्दी -दिवस मनाने वालो
हिन्दी को भी तुम अपनाओ ।
क्योंकि--
अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी
किन्तु अगर
अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--
पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।
कुछ नहीं दे पाएगी -----
10 comments:
बहुत बढ़िया
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना . हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लें .
अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी
किन्तु अगर
अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--
पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।
कुछ नहीं दे पाएगी -----
शोभा जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है । हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .. अपनी मां को ही भिखारन बने कैसे देख सकते हें हम .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
हैलो, लेडीज़ एंड जैंटलमैन, टूडे हमको हिंडी डे मनाना मांगटा...
अंग्रेज़ चले गए लेकिन अपनी....छोड़ गए...
हिंदी दिवस पर भाषा का सही हश्र दिखाती शशक्त रचना है .........
अर्विंद जी आज यही हो रहा है, नालय बेटे अपनी ही आभागन मां को छोड कर गोरी को माम कह रहे है, लेकिन इन्हे यह नही पता कि पराये इन्हे ठुकरायेगे ही, जेसे इन के बाप दादा को कुत्ता बना कर रखा था....
मेरा हर दिन हिन्दी दिवस है, फ़िर केसे सिर्फ़ एक ही दिन मै इसे दुं ??
आप का धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
माफ़ी चाहुंगा शोभा जी की जगह मेने अर्विंद जी लिख दिया गलती सुधार ले
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ। कविता बहुत सुन्दर है।
shobhaji
aapki kavita ne ek katu satya ko ujagar kiya hai kyonki Bharat hi ekmatra aisa Desh hai jahan ki matribhasha etni upekshit hai aur yah baat to sachhai hai jab tak ham apni matribhasha ka aadar karna nahi sikhenge tab tak ham kisi vikas ki kalpana hi nahi kar sakte vikas asal me kya shabd hai wahi ham bhool chuke hai chand log matra 2 % log hi is poore vishwa ko apne dhang se chala rahe hain aur usiko vikas ka naam de rahen hain bhasa ke prati aapki samwedanshilta aapki kawita me jhalakti hai dhanyawad main to iska kayal ho gaya.
ashok kumar dubey,Dwarka, Delhi
सुंदर अभिव्यक्ति
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