जो चढ़ गए पुण्य-वेदी पर........
>> Sunday, September 27, 2009
प्रिय पाठकों !
यह सप्ताह भारत के इतिहास का एक विशिष्ट सप्ताह है। १०० वर्ष पहले इसी सप्ताह इस धरती पर दो महान
विभूतियों ने जन्म लिया था। एक क्रान्तिदूत , शहीदे आज़म भगत सिंह और दूसरे राष्ट कवि रामधारी सिंह
दिनकर। दोनो ने अपने-अपने दृष्टिकोण से देश को दिशा निर्देशन किया। एक जीवन की कला के पुजारी रहे
और दूसरे ने सोद्देश्य मृत्यु अपनाकर विश्व को हर्ष मिश्रित आश्चर्य में डाल दिया। भगत सिंह का मानना था
कि तिल-तिल मरने से अच्छा है स्वयं सहर्ष सोद्देश्य मृत्यु का वरण करो और दिनकर का मानना था कि
जियो तो ऐसा जीवन जियो कि जान डाल दो ज़िन्दगी में। एक ने बलिदान की तथा एक ने संघर्ष की राह
दिखाई।
भगत सिंह एक विचारशील उत्साही युवा थे जिन्होने बहुत सोच समझकर असैम्बली में बम विस्फोट किया
। वे जानते थे कि इसका परिणाम फाँसी ही होगा किन्तु ये भी समझते थे कि उनका बलिदान देश के
क्रान्तिकारी आन्दोलन को एक दिशा देगा और अंग्रेजों का आत्मबल कम करेगा। मरा भगत सिंह ज़िन्दा
भगत सिंह से अधिक खतरनाक साबित होगा और वही हुआ। उनके बलिदान के बाद क्रान्ति की लहर सी
आगई। २४ वर्ष की आयु में उन्होने वो कर दिखाया जो सौ वर्षों में भी सम्भव नहीं था। उन्होने देश को
स्वतंत्रता, समाजवाद और धर्म निरपेक्षता का महत्व बता दिया। परिणाम स्वरूप आज़ादी के बाद लोकतंत्र
की स्थापना हुई। ये और बात है कि यदि वे आज देश की दशा देखें तो दुखी हो जाएँ।
दूसरे महान व्यक्तित्व थे राष्ट कवि दिनकर। दिनकर जी जीने की कला के पुजारी थे।
२ वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो गया। बचपन अभावों में बीता। सारा जीवन रोटी के लिए संघर्ष
किया और अवसाद के क्षणों में काव्य की आराधना की। सरकारी नौकरी करते हुए देश भक्ति और क्रान्ति
से भरा काव्य लिखा और क्रान्ति का मंत्र फूँका। हुँकार, सामधेनी, रश्मि रथी, कुरूक्षेत्र ने देश के लोगों में
आग जला दी। पद्मभूषण और ग्यानपीठ पुरुस्कार प्राप्त करने वाला कवि साधारण मानव की तरह विनम्र
था। कभी-कभी आक्रोश में आजाता था। उन्होने समाज में संतों और महात्माओं की नहीं , वीरों की
आवश्यकता बताते हुए लिखा-
रे रोक युधिष्ठिर को ना यहाँ, जाने दे उसको स्वर्ग धीर।
पर फिरा हमें गाँडीव-गदा, लौटा दे अर्जुन-भीम वीर।
कह दे शंकर से आज करें, वे प्रलय नृत्य फिर एक बार।
सारे भारत में गूँज उठे, हर-हर बम-बम का महोच्चार
देश के शत्रुओं को भी उन्होने ललकारा और लिखा-
तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यों मत कुरेदो।
दहकता लावा हृदय में है कि हम ज्वाला मुखी हैं।
वीररस के साथ-साथ उन्होने श्रृंगार रस का मधुर झरना भी बहाया। उर्वशी उनका अमर प्रेम काव्य है।
जिसमें प्रेम की कोमल भावनाओं का बहुत सुन्दर चित्रण है।
दिनकर का काव्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनकी कविता भारत के लोगों में नवीन उत्साह जगाती
है। सारा जीवन कठिनाइयों का विषपान करने पर भी समाज को अमृत प्रदान किया। ऐसे युग पुरूष को
मेरा शत-शत नमन।
7 comments:
बहुत सुन्दर लिखा है .......... सच में दोनों वीर हैं क्रान्ति के ............. अलग अलग तरीका है बस ............. कवी दिनकर की तो रचनाएं देश प्रेम की भावना से सदा ही ओतप्रोत हैं ........... नमन है कलम के इस क्रांतिवीर को ........
भगत सिंह की सोच अंग्रेजोँ से मुक्ति से कहीँ आगे की थी।
वे देश की सांप्रदायिक ताकतोँ से नफरत करते थे ।
आजादी के बाद की पूरी दृष्टि उनके पास था ।
शोभा जी दोनो ही वीर थे, दोनो ही मेरे मन मस्तिक मै बसे है, शहीद भगत सिंह के गीत तो हमे आरती की तरह याद है, ओर दिन कर जी की रचनाये भी मुंह जुबानी याद है, भगत सिंह जेसे वीरो के बारे बचपन से ही पढते आये है, ओर हमे इन लोगो का धन्यवाद करना चाहिये जिन की वजाह से हम आज आजाद है.
आप का धन्यवाद
मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
आओ मेरे साथ चलो तुम सीमा से शमशान तक
सोए हैं कुछ शेर यहां पर पहन केसरी बाना
टूट न जाए नींद किसी की धीरे धीरे आना
एक साल में सिर्फ एक दिन श्रद्धा सुमन चढ़ाना
आंसू दो टपका देना और इनको भूल न जाना
देशप्रेमी भगतसिह और दिनकर जी कवी साहित्यकार दोनों में राष्ट्रभक्ति का भरपूर जज्बा था . भगत सिह बन्दूक के बल पर तो दिनकर जी कलम से अंग्रेजो से संघर्ष कर रहे थे . दोनों ही इस द्रष्टि से महान थे . दोनों को नमन . आभार
दिनकर जी की याद दिलाने के लिए शुक्रिया शोभाजी ! और भगत सिंह के बारे में क्या कहें ...हम पाँव की धुल भी नहीं हैं उनके वलिदान के आगे ..
शुभकामनायें !
ATYOTTAM SANDESH
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