आज दिल में
>> Sunday, November 30, 2008
आज दिल में एक हूक सी उठ रही है। आँखों में अंगारे हैं। समझ नहीं आता किसको दोष दूँ? आतंकवादियों को, नेताओं को या देश की भोली जनता को ? या फिर अपनी शासन प्रणाली पर आँसू बहाऊँ ? जहाँ चोर, बेईमान खुले आम जनता को लूटते हैं और जनता कुछ नहीं कर पाती ? आखिर कब तक हम इसी प्रकार देश को जलता देखते रहेंगें ? हमारे हाथ इतने कमजोर क्यों हैं ?
मैं अब एक गीत गाना चाहती हूँ, वतन अपना बचाना चाहती हूँ।
मुझे अपना जरा विश्वास दे दो, मैं अपना घर बचाना चाहती हूँ
रूदन और चीख ने हमको डराया, हमारी हर खुशी पर डर का साया
मैं डर सबका मिटाना चाहती हूँ, निडर सबको बनाना चाहती हूँ।
वतन मेरा करें वीरान वो क्यों, शरण घर में ही दुश्मन पाएगा क्यों
कमीं घर की मिटाना चाहती हूँ, मैं ये उपवन बचाना चाहती हूँ
हमारी एकता खंडित हुई है, हमारी ताकतें सीमित हुई हैं
उन्हें विस्तृत बनाना चाहती हूँ, मैं टूटा घर बनाना चाहती हूँ ,
वतन के दुश्मनों को तुम जला दो, ये है भारत की भूमि ये बता दो
नयन उनके झुकाना चाहती हूँ, नमन तुमको कराना चाहती हूँ।
24 comments:
रात के अंधकार का घनापन जल्द ही सुबह की रोशनी के आने का सूचक होता है। हमारी एकजुटता, नकारों के विरुद्ध लगातार उठती आवाजें बदलाव लायेंगी।
नही हम इतने कमजोर नही है, यह लडाई खुलमखुला नही थी, लेकिन हमारे नेताओ ने पहली घटना पर कुछ जबाब दिया होता तो आज यह दिन ना देखना पडता. अगर यह वीरो की तरह ललकारे तो बात है, फ़िर देखे किस मै दम है. नही हम कमजोर नही.
शोभा जी बहुत ही अच्छी रचना है।
Dil se nikli baat.Badhai.
मैं अब एक गीत गाना चाहती हूँ, वतन अपना बचाना चाहती हूँ।
मुझे अपना जरा विश्वास दे दो, मैं अपना घर बचाना चाहती हूँ
बहुत ही अच्छी रचना है।
शोभा जी,
आपका दर्द हम सब भारतीयों का साझा दर्द है. आप इसे बहुत सटीक शब्दों में प्रस्तुत कर सकीं, आभार!
अच्छी रचना है, शोभा जी। आपकी भावनाओं के साथ हम भी हैं। बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ पाया हूं, अच्छा लगा।
हमारी एकता खंडित हुई है, हमारी ताकतें सीमित हुई हैं
उन्हें विस्तृत बनाना चाहती हूँ, मैं टूटा घर बनाना चाहती हूँ ,
bahut hi khubsurat bhivyakti aaj man mein udh rahey jazbaton ki.
मैं अब एक गीत गाना चाहती हूँ, वतन अपना बचाना चाहती हूँ।
मुझे अपना जरा विश्वास दे दो, मैं अपना घर बचाना चाहती हूँ
बहुत मर्मस्पर्शी--
---मीत
वतन के दुश्मनों को तुम जला दो, ये है भारत की भूमि ये बता दो
नयन उनके झुकाना चाहती हूँ, नमन तुमको कराना चाहती हूँ।
अच्छी कविता है..धन्यवाद.
वतन मेरा करें वीरान वो क्यों, शरण घर में ही दुश्मन पाएगा क्यों
कमीं घर की मिटाना चाहती हूँ, मैं ये उपवन बचाना चाहती हूँ|...अभिव्यक्ति का आपका ढंग शोभाजी, बहुत ही सुंदर है|
आपके दिल की आवाज़ आज हर सच्चे भारतीय की आवाज़ है. आप ने अपना कीमती समय मेरे ब्लॉग को दिया आभारी हूँ. नेट पर कम ही आता हूँ. कभी आपकी शुक्रगुजारी अदा न कर पाऊँ तो माफ़ कर दीजियेगा.
Dear Shoba,
Aaapki is kavita mein jo deshbhakti hai , wo hamen sazak karti hai .
itni acchi kavita ke liye badhai..
regards,
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बहुत सुंदर रचना बधाई
बहुत समझ के साथ एक भारतीय दिल की बात रचना में समेट दी है!
शोभा जी,
जज्बात से भरे हुए होने के लिए आपको सबसे पहले बधाई,
देश की एकता के गीत को जो शब्द आपने दिए हैं, सुंदर हैं और शाश्वत भी मगर.....
भगत सिंह ने हिन्दुस्तान के लिए पूर्ण आजादी मांगी थी, आजादी यानी की सबकी आजादी, सबको संप्रभुता, सबको अधिकार..........
हमें हमारे देश से, हमारी दुनिया से, इस भूमंडल से से आतंकवाद को हटाना होगा ना की आतंकी को क्यूंकी जब तक जड़ रहेगा नए नए पौधे अवतरित होंगे और निसंदेह वो पौधे हमारी कटाई छटाई ना करने के कारण ही अपना स्वरुप बिगाड़ लेते हैं.
बौधिक और स्थापत्य लोगों की जिम्मेदारी की भटकाव के रास्ते पर शिक्षा का दीप जलाये.
आपको बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए.
हमारी एकता खंडित हुई है, हमारी ताकतें सीमित हुई हैं
उन्हें विस्तृत बनाना चाहती हूँ, मैं टूटा घर बनाना चाहती हूँ ,
वतन के दुश्मनों को तुम जला दो, ये है भारत की भूमि ये बता दो
नयन उनके झुकाना चाहती हूँ, नमन तुमको कराना चाहती हूँ।
Shobhaji, bahot hi chotdaar rachna bani hay yah. Sabhi Hindustaniyon ka ab yah kartavya banta hai ki ve jage, uthe aur aage badhe taki ye nakab posh log hamen aur kamjor na bana paye aur hum per aur prahar na kar paye. Jay Hind
Waah ! bahut hi sundar,sateek saarthak abhivyakti.....
आख़िर की दो लाइनों में लिए गए संकल्प को नमन .
सुंदर कविता
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति शोभाजी. ये तमाम हिन्दुस्तानियों के दिल की आवाज़ आपने अपनी कलम से कह डाली.
..Yeh Kavita jo aapne vyakatkii hai..woh padh kar ek napunsak neta bhii hunkaar maar dega.....waise mei aapse ek guzarish karna chahta huun,kii aap ek aisee kavita likhain jo ek aahwan roopi rachnaa ho.
I feel, elated that today you have stirred the soul of every indian in this poem..
bahut hi badhiya hai.
आपको बहुत बहुत बधाई
सुंदर रचना
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