बिजली की परेशानी पर
>> Wednesday, August 27, 2008
जब सवाल हमने उठाया
उन्होने मुसकुरा कर
हमें ही दोषी बताया
बोले-------
यह परेशानी भी
तुम्हारी ही लाई है
सच-सच बताओ-
ये बिजली तुमने
कहाँ गिराई है ?
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तुम्हारी बातें भी अब
दिल तक पहुँच नहीं पाती हैं
बात शुरू होते ही--
बिजली चली जाती है--
प्रतिपल आती -जाती
बिजली से दुःखी हो
हमने बिजली दफ्तर में
गुहार लगाई
विद्युत अधिकारी ने
लाल-लाल आँखें दिखाई
अजीब हैं आप--
हम पर आरोप लगा रहे हैं
अरे हम तो आपका ही
खर्च बचा रहे हैं
इस मँहगाई में
बिजली हर समय आएगी
तो बिजली का बिल देखकर
आप पर------
बिजली नहीं गिर जाएगी ?
15 comments:
बिजली की परेशानी बहुत झेल रही हूँ अच्छी लगी यह वाली ..बहाना अच्छा है :)अरे हम तो आपका बिल बचा रहे हैं ..:)
बहुत खूब। बिजली से हम भी त्रस्त हैं। ऐसे में हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण यह कविता पढ़ना अच्छा लगा।
किसी भी व्यंग के साथ एक बात बहुत मायने रखती है की वह कितना सामयिक और प्रभावी है,पर यहाँ आकर दोनों शर्तें बखूबी पुरी हो जाती हैं.बहुत अच्छा.
आलोक सिंह "साहिल"
मजेदार!!बहुत अच्छा.
aapki vyathaa..sabki vyathaa...bahut acchha gunthaa hai aapney
शोभा जी आज आप की कविता मे हास्य-व्यंग्य देख कर अच्छा लगा, बहुत सुन्दर कविता लिखी हे आप ने धन्यवाद
बहुत अच्छी क्षणिकाएँ, बधाई |
दो शब्द मेरे भी |
बिजली के जलते
बल्ब को देखो
कही खुशियाँ
एक स्विच की
मोहताज तो नही ?
आपकी मूल्यवान टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यबाद .....कृपया नियमित आगमन बनाए रखें दो शब्द आपकी रचना के सिलसिले में
"यह परेशानी नहीं आसानी हो गयी
अंधेरे में हमसे भी कुछ तो नादानी हो गयी"
आपकी रचना अति सुंदर है
बधाई
Bijlee per ekdam hi sahi vyangya hai aap ka yah. Sabhi logon ki pareshani aap ne hans kar hal kar di shobhaji!
उ.प वालो से पूछिए व्यथा किसे कहते है?
Bijali vyatha ke bare me achchi rachana . ham sabhi Bijali rani se pidit hai.
बहुत सहज किंतु रोचक
और रचना की दृष्टि से सधी हुई प्रस्तुति.
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बधाई शोभा जी.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
रोचक और बेहतरीन रचना ! बधाई !
शोभा जी, बहुत खूब! प्रदीप की दो लाइनें भी अच्छी लगीं.
बिजली का बिल देख कर बिजली आप पर नही गिर जायेगी ? क्या बात है, बढिया व्यंग ।
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