संवेदना
>> Thursday, August 30, 2007
स्वतंत्र भारत के नागरिकों
मेरी संवेदना तुम सबके प्रति है ।
क्योंकि ------
तुम केवल बाहर से स्वतंत्र हो
भीतर से तो आज भी
गुलामी के उसी बन्धन में
जी रहे हो --
सोचो तो -इतने उत्सव ,
इतने आयोजन -
क्यों कर रहे हो ?
गुलामी ही तुम्हारी नियती है ।
इसीलिए -
मेरी संवेदना तुम्हारे प्रति है ।
तुम गाँधी, सुभाष और
तिलक की बात करते हो ?
अपने अन्तर से पूछो
क्या उनका आचरण धरते हो
देश की खातिर क्या
कभी कुछ किया है ?
फिर इन बलिदानियों का
नाम क्यों लिया है ?
ये तो आडम्बर की
घोर परिणिति है ।
इसीलिए-
मेरी संवेदना तुम सब के प्रति है ।
आज़ादी के लिए ही
उन्होने जानें गँवाई
किन्तु तुमने आज़ादी
इतने सस्ते में लुटाई ?
स्वार्थ संकीर्णता में फँस कर
सारी ज़िन्दगी बिताई ?
कभी धन,कभी प्रतिष्ठा
कभी पद, कभी स्वार्थ
के गुलाम बने रहे ।
भोगों के पीछे भागने की तो
आज हो चुकी अति है ।
इसीलिए ---
मेरी संवेदना तुम सबके प्रति है ।
देश प्रेम और राष्ट्रीय आस्मिता की
कोरी बाते मत करो ।
ये सब अर्थ हीन हैं ।
यदि सत्य होती तो-
भगत- सिंह और सुभाष
देश छोड़ विदेश जाने का
ख्वाब क्यों सजाते ?
सुख-आराम की लालसा में
क्यों इतने तिलमिलाते ?
देश के कर्णाधार क्यों
देश को ही खा जाते ?
साम्प्रदायिकता का काला
ज़हर क्यों फैलाते ?
क्यों सबकी ऐसी मति है ?
इसीलिए--
मेरी संवेदना -
तुम सब के प्रति है ।
किसी दिन तुम सच में
आज़ाद हो जाओ ।
अपना देश,अपना घर
अपना आँगन सजाओ ।
भारत की सुन्दर छवि बनाओ
वन्दे मातरम् की सच्ची
भावना ले आओ ।
भारत से स्वार्थ को
दूर भगाओ ।
तन-मन और मन से
समर्पित हो जाओ ।
प्रेम की गंगा में
डुबकी लगाओ ।
रोती हुई आँखों को
हास दे जाओ ।
फिर ध्वज फहराने की
पूर्ण अनुमति है ।
वरना---
मेरी संवेदना
तुम सबके प्रति है ।
इन सब के प्रति है ।
2 comments:
सजगता की संवेदना ....संवेदनाके लिए हार्दिक बधाई!! सुंदर कविता!!!!
आदरणीय शोभा जी
नमस्कार
आपकी नयी कविता एवं ब्लाग दोनों पर आपने इन दिनों बहुत ही सकारात्मक प्रयास किया है. परिणाम सहज ही मन को प्रभावित करने में सक्षम है. विशेष कर संवेदना विषय पर लिखी आपकी रचना हृदय को छू गयी. पुर्नरूपायित अनुभव के लिये बधाई.
सादर
श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
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