एक अहसास
>> Sunday, July 8, 2007
कितना सुखद अहसास है
कोई हर पल- हर घड़ी
मेरे साथ है ।
कभी हँसाता है,
कभी रूलाता है
और कभी ---
आनन्द के उस समुन्द्र में
धकेल देता है
जहाँ------
उअनुभूति की खुमारी है
बड़ी लाचारी है ।
मैं षोडषी बन
चहकने लगती हूँ ।
उसकी बातों में
बहकने लगती हूँ ।
अपनी इस दशा को
कब तक छिपाऊँ
और किसको अपना
हाल बताऊँ ?
अपनी उस अनुभूति के लिए
शब्द कहाँ से लाऊँ ?
किसी को क्या
और कैसे बताऊँ ?
ये तो अहसास है ।
जो कहा नहीं जा सकता
समझ सकते हो
तो समझ जाओ ।
नूर की इस बूँद को
मौन हो पी जाओ ।
मौन हो पी जाओ ।
5 comments:
जहाँ------
अनुभूति की खुमारी है
बड़ी लाचारी है ।
मैं षोडषी बन
चहकने लगती हूँ ।
बहुत सुन्दर और सरस।
क्या कहूं तुमको बिना आंखों की देखी बात है
मुस्कुराहट में छनी जब चांदनी मेरे तईं।
आपने ब्लाग पर पहली बार आया हूं। हिन्द-युग्म पर आपकी टिप्पणी पढ़ने के बाद।
नूर की इस बूँद को
मौन हो पी जाओ
aapko padh kar bahut achha laga shobha ji
बहुत सुन्दर भाव भरी रचना है आप की.. सचमुच मन के अहसासों को छुपाना बहुत कठिन है.. कभे चेहरा, कभी आंखे तो कभी हमारे हाव भाव हमारे अहसासों को प्रकट कर ही देते हैं...
मगर
कुछ गीत तो दुनिया की खातिर
सुर ताल में गाये जाते हैं
कुछ गीत मगर तन्हायी में
खुद को भी सुनाये जाते हैं
man ki anubhuti, bahot jyada der tak ise aap chhipa nahi sakte, chahakna aur bahakna jaayaj hota hai aisi sthiti mein. sabse badhiya aur santosh purna yahi hai ki yah ek sukhad ehsas hai. aur ise kisi ko batane ke liye shabd bhi nahi hi milte, bus jiski baaton mein SHODSHI ban kar chahakne lago usi ko pata chal jaye to bahot. very nice poem, keep it up.
achchhi lagi aapki ye rachna.sateek shabdon mein bhawna ka utpaadan. Shubhkaamnaayein!
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