काश!
>> Friday, May 16, 2008
काश!
मैं बन जाऊँ एक सुगन्ध
जो सबको महका दे
सारी दुर्गन्ध उड़ा दे
या
बन जाऊँ एक गीत
जिसे सब गुनगुनाएँ
हर दिल को भा जाए
अथवा…
बन जाऊँ नीर
सबकी प्यास बुझाऊँ
सबको जीवन दे आऊँ
या फिर..
बन जाऊँ एक आशा
दूर कर दूँ निराशा
हर दिल की उम्मीद
अथवा…
बन जाऊँ एक बयार
जो सबको ताज़गी दे
जीवन की उमंग दे
नव जीवन संबल बने
तनाव ग्रस्त ..
प्राणी की पीड़ा पर
मैं स्नेह लेप बन जाऊँ
जग भर की सारी
चिन्ताएँ मिटा दूँ
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
सारी सृष्टि पर अपनी
ममता लुटाऊँ
8 comments:
जग भर की सारी
चिन्ताएँ मिटा दूँ
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
आज तो सच में यही दिल चाह रहा है शोभा आपने मेरे दिल की बात बखूबी इस रचना में उतार दी ..बहुत पसंद आई मुझे यह :)
बहुत अच्छी सोच के साथ अच्छी कविता
बन जाऊँ एक आशा
दूर कर दूँ निराशा
हर दिल की उम्मीद
अथवा…
बन जाऊँ एक बयार
जो सबको ताज़गी दे
जीवन की उमंग दे
नव जीवन संबल बने
तनाव ग्रस्त ..
प्राणी की पीड़ा पर
मैं स्नेह लेप बन जाऊ
respected shobhaji
behad saral shabdo me aapne gahri bat likhi hai .very nice !!beautiful
बहुत अच्छी कविता है, बधाई.
bahut badiya
शोभा जी,
आप सुगंध, नीर, गीत, आशा, बयार और छाया अवश्य बनें यह शुभकामना तो है ही साथ ही बेहतरीन रचना की बधाई भी स्वीकार करें...
***राजीव रंजन प्रसाद
शोभा जी,
आप सुगंध, नीर, गीत, आशा, बयार और छाया अवश्य बनें यह शुभकामना तो है ही साथ ही बेहतरीन रचना की बधाई भी स्वीकार करें...
***राजीव रंजन प्रसाद
जग भर की सारी
चिन्ताएँ मिटा दूँ
जी चाहता है आज
निस्सीम हो जाऊँ
एक छाया बन
नील गगन में छा जाऊँ
सारी सृष्टि पर अपनी
ममता लुटाऊँ
Shobhaji, aur ek sunder rachna. Aap ko hamari subh kamnaayen ki aap yah sabhi kar paye jo apne is kavita mein bayan kiya hai taki is duniya se kafi dukh-dard hat jayega
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