मेरे अनुभव को अपनी प्रतिक्रिया से सजाएँ

खूब पहचानती हूँ

>> Sunday, January 6, 2013

खूब पहचानती हूँ
मैं…….
तुमको और तुम्हारे
समाज के नियमों को
जिनके नाम पर
हर बार…….
मुझे तार-तार किया जाता है
किन्तु अब…..
मेरी आँख का धुँधलका
दूर हो चुका है
अब सब कुछ
साफ दिखाई दे रहा है
अरे! हर युग में
तुम्हीं तो कमजोर थे
तुमने सदा ही
भयाक्रान्त हो
मेरी ही शरण ली है
और मैं …….
हमेशा से तुम्हारी
भयत्राता रही

जन्म लेते ही तुम
मुझ पर आश्रित थे
पल-पल …
मेरे ही स्नेह से
पुष्पित-पल्लवित तुम
इतने सबल कैसे हो गए?

मैने ही विभिन्न रूपों में
तु्म्हें उबारा है
माँ, भगिनी, प्रेयसी और
बेटी बनकर
तुम्हें संबल दिया है

और आज भी…
हाँ आज भी…
तुम ……..
मेरी ही …
कृपा के पात्र हो
मेरे द्वार के भिखारी
तुम-- हाँ तुम

किन्तु आज मैने
तुम्हारे स्वामित्व के
अहं को तोड़ दिया है
उस कवच में रहकर
तुम कब तक हुंकारोगे?

आज तुम मेरे समक्ष हो
कवच- हीन….
वासनालोलुप…..
मेरे लिए तरसते…
हुँह!

कितने दयनीय …
लगते हो ना..
अब तुम्हारी कोई चाल
मुझपर असर नहीं करती
अपने आत्मबल से मैं
तुम्हें भीतर देख लेती हूँ

बाज़ी आज मेरे हाथ है
सावधान!
षड़यंन्त्र की कोशिश
कभी मत करना
मेरी आँखों में अँगार है
और……
और……
तुम्हारा रोम-रोम
मेरा कर्जदार है

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>> Friday, September 14, 2012


हिन्दी दिवस पर मेरी एक छात्रा की अभिव्यक्ति 


हिन्दी दिवस


 १४ सितम्बर को है हिन्दी दिवस


 हमारी अध्यापिका ने है बताया


 मुख्य रूप से हैं तो वो हिन्दी की अध्यापिका


 यह जानकर दिल हर्षाया


 उन्होंने हम सब को हिन्दी का इतिहास बताया


 किस-किस ने इसको यहां तक पहुंचाया


 हमारी हिन्दी सबसे सुन्दर सबसे सरल भाषा है


 व्याकरण है बहुत तर्क संगत


विदेशी  शब्दों को प्यार से अपनाती है


 सभी पर अपनी ममता लुटाती है


 बहुत वैग्यानिक है यह भाषा


 हम सबको इससे हैं बहुत आशा


 मेरे मन में भी कवि बनने का विचार आया


 बस तभी मैने यह कलम उठाया


 साक्षी दशम अ

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मेरा अभिमान है हिन्दी


हिन्दी दिवस की पूर्व सन्धया पर

 कुछ लिखने को कलम उठाया

 हिन्दी को एक ओर उपेक्षित सा पाया

 उसकी यह दशा दिल को हिला गई

 मेरे दुखते मन में अनेक प्रश्न उठा गई

 जो भाषा संस्कार देती है

 माता का प्यार देती

है बहन का दुलार देती है

 फूलों का हार देती है

 उसकी उपेक्षा?

 क्रत्घनता नहीं तो क्या है?


 कब तक राष्ठ्र भाषा यों धक्के खाएगी?

 हमारी अस्मिता कब तक सो पाएगी?

 परायों का आदर और अपनों का अनादर?

 ऐसी स्थिति कब तक रह पाएगी ?

 संकल्प लेती हूँ आज

 हिन्दी ही करेगी दिलों  पर राज

 अपनी भाषा को देंगें सम्मान

 करने ना देंगें किसी को अपमान

 क्योंकि

 हमारी पहचान है हिन्दी

 हमारा अभिमान है हिन्दी


 शोभा महेन्द्रू

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नव वर्ष की

>> Saturday, January 1, 2011

नव वर्ष की
स्नेहिल दस्तक
उर आनन्द जगाती है
बीत गया जो वर्ष पुराना
उसको राह बताती है
नव उल्लास समाता उर में
नव उमंग लहराती है

आँखों में हैं कितने सपने
जीवन को महकाने के
बीती बातों को विस्मृत कर
नव उत्साह जगाने के

गत अतीत की मीठी यादें
आँखों में लहराती हैं
खोया-पाया किसने क्या-क्या
फिर उनको दोहराती हैं

ले अतीत की सुन्दर यादें
भावी को चमकाएँ हम
स्वागत करें नव-आगन्तुक का
कलियाँ राह बिछाएँ हम

संकल्पों में दृढ़ता लाएँ
नव योजनाएँ जीवन में
पीड़ा -शोषण दूर भगा दें
स्व का लोभ भुलाएँ हम

नव वर्ष में नव-उम्मीदें
नव-संकल्प जगाएँ हम
आओ बन्धु नव वर्ष में
जीवन नया बनाएँ हम

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हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं

>> Sunday, September 12, 2010

हम सब

हिन्दी दिवस तो मना रहे हैं

जरा सोचें

किस बात पर इतरा रहें हैं ?

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा तो है

हिन्दी सरल-सरस भी है

वैग्यानिक और

तर्क संगत भी है ।

फिर भी--

अपने ही देश में

अपने ही लोगों के द्वारा

उपेक्षित और त्यक्त है ------

---------------जरा सोचकर देखिए

हम में से कितने लोग

हिन्दी को अपनी मानते हैं ?

कितने लोग सही हिन्दी जानते हैं ?

अधिकतर तो--

विदेशी भाषा का ही

लोहा मानते है ।

अपनी भाषा को

उन्नतिका मूल मानते हैं ?

कितने लोग

हिन्दी कोपहचानते हैं ?-----------------

--------भाषा तो कोई भी बुरी नहीं

किन्तु हम

अपनी भाषा से

परहेज़ क्यों मानते हैं ?

अपने ही देश में

अपनी भाषा की

इतनीउपेक्षा

क्यों हो रही है

हमारी अस्मिता

कहाँ सो रही है ?

व्यवसायिकता और लालच की

हद हो रही है ।-----------------

--इस देश में

कोई फ्रैन्च सीखता है

कोई जापानी

किन्तु हिन्दी भाषा

बिल्कुल अनजानी

विदेशी भाषाएँ

सम्मान पा रही हैं

औरअपनी भाषा

ठुकराई जारही है ।

मेरे भारत के सपूतों


ज़रा तो चेतो ।

अपनी भाषा की ओर से

यूँ आँखें ना मीचो ।

अँग्रेजी तुम्हारे ज़रूर काम आएगी ।

किन्तु

अपनी भाषा तो

ममता लुटाएगी ।

इसमें अक्षय कोष है

प्यार से उठाओ

इसकी ग्यान राशि से

जीवन महकाओ ।

आज यदि कुछ भावना है

तो राष्ट्र भाषा को अपनाओ ।

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हिन्दी से मुलाकात

>> Wednesday, September 8, 2010

कल रात स्वप्न में

मेरी मुलाकात हिन्दी

से हो गई ।

डरी,सहमी कातर

हिन्दी को देखकर

मैं हैरान सी हो गई ।

मैंने पूछा -

तुम्हारी यह दशा क्यों ?

तुम तो राष्ट्र भाषा हो ।

देश का स्वाभिमान हो ।

हिन्द की पहचान हो ।

यह सुनते ही--

हिन्दी ने कातर नज़रों से

मेरी ओर देखा ।

उसकी दृष्टि में जाने क्या था

कि मैं पानी-पानी हो गई ।

मेरे अन्तर से जवाब आया

जिस देश में राष्ट्र भाषा

की यह दशा हो--

उसे राष्ट्रीय अस्मिता की बातें

करने का क्या अधिकार है ?

जब विदेशी ही अपनानी है

तो इतना अभिनय क्यों ?

हिन्दी-दिवस जैसी औपचारिकताएँ

कब तक सच्चाई पर पर्दा

डाल पाएँगी ?

शर्म से मेरी आँखें

जमीन में गड़ जाती हैं

और चुपचाप आगे बढ़ जाती हूँ ।

किन्तु एक आवाज़

कानों में गूँजती रहती है ।

और बार-बार कहती है -

हिन्दी -दिवस मनाने वालो

हिन्दी को भी तुम अपनाओ ।

क्योंकि--

अपनी भाषा ही उन्नति दिलाएगी

किन्तु अगर

अपनी माँ ही भिखारिन रही तो--

पराई भी कुछ नहीं दे पाएगी ।

कुछ नहीं दे पाएगी -----
Labels: शोभा महेन्द्रू | Shobha Mahendru

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शिक्षक दिवस

>> Saturday, September 4, 2010

शिक्षक दिवस नज़दीक आरहा है, किन्तु शिक्षकों की दशा देख मन घबरा रहा है। वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित एवं आरोपित

शिक्षक ही है। वह अनेक आलोचनाओं का शिकार हो रहा है। उसकी कर्तव्य निष्ठा पर अनेक सवाल उठाए जा रहे हैं। फिल्म

जगत ने उसकी इस छवि को बिगाड़ने में विशिष्ट भूमिका निभाई है। ऐसे में इस व्यवसाय की ओर से यदि नई पीढ़ी उदासीन

हो तो आश्चर्य ही क्या ?

समाज की इस दशा को देखकर मन में अनेक प्रश्न उठते हैं। सबसे अधिक विचारणीय विषय यह है कि कोई भी व्यक्ति इस

व्यवसाय की ओर क्योंकर आकृष्ट हो? वेतन कम, तनाव अधिक , आलोचनाएँ पल-पल और सम्मान ? नदारद। एक फिल्म

में उसे बच्चों का टिफिन खाता दिखाया जाता है और दूसरी में उसे बच्चों पर अनाचार-अत्याचार करता या बच्चों के साथ

रोंमांस करता दिखाया जाता है। ऊपर से मीडिया ……मैं मानती हूँ कि बालकों को मारना,पीटना या प्रताड़ित करना उचित नहीं

किन्तु सकारण कभी-कभी अध्यापक को कठोर होना पड‌ता है। प्यार से पढ़ाने की बात सही है किन्तु कभी एक बार अध्यापक

के स्थान पर आकर देखो। जो समस्याएँ अध्यापक अनुभव करते हैं उन्हें बिना समझे उन्हे अदालत में घसीटना कितना उचित

है?

वर्तमान समय मे स्वः अनुशासन जैसे शब्द कोई नहीं जानता। भय बिनु होय न प्रीति भी पूरी तरह ठुकराई नहीं जा सकती।

अध्यापक बच्चों को सुधारने के लिए कभी उन्हे दंडित भी करता है। बच्चों की अनुशासन हीनता सीमा का अतिक्रमण कर चुकी

है। विद्यार्थी कक्षा में बेशर्मी करे और अध्यापक मूक रहे- यही चाहते हैं सब ? क्या हो सकेगा राष्ट्र निर्माण ?


आज कक्षा में दस छात्र पढ़ना चाहते हैं और ३० नहीं। तब क्यों शिक्षा को आवश्यक बना कर उनपर लादा जा रहा है?

मैं बहुत बार ऐसे छात्रों को देखकर सोचती हूँ क्यों ना पढ़ने के लिए बाध्य किया जा रहा है? जबरदस्ती पढ़ाए जाने पर क्या वो

शिक्षा का उचित लाभ उठा पाएँगें?

माता- पिता के पास समय नहीं है, अध्यापक को सुधार की आग्या नहीं है फिर कैसे होगा राष्ट्र निर्माण ? और सम्मान भी

ना मिला तो कौन बनेगा अध्यापक ???

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हे कृष्ण

>> Thursday, September 2, 2010




हे कृष्ण

आज सारा भारत

पूर्ण भक्ति एवं श्रद्धा से

तुम्हें नमन कर रहा है ।

हे योगीराज

जितेन्द्रिय

परम ग्यानी

परम प्रिय

तुम्हारी भक्ति की धारा

एक पवित्र भाव बनकर

दिलों में बह रही है ।

किन्तु हे परम प्रिय

परम श्रद्धेय

तुमने गीता में

सबको आश्वासन क्यों दिया?

स्वयं कर्म योगी होकर भी

सबको परमुखापेक्षी

क्यों बना दिया ?

अब दुःख आने पर

लोग संघर्ष नहीं करते

तुम्हें पुकारते हैं ।

हे जितेन्द्रिय

तुम्हारे भक्त कामनाओं

के दास बन चुके हैं ।

भक्ति तो करते हैं

पर कर्म तज चुके हैं ।

अन्याय से दुखी तो होते हैं

पर उसका प्रतिकार

नहीं कर पाते ।

कब तक हम प्रतीक्षा करेंगें?

हमें बल दो कि हम

खुद अन्याय से लड़ पाएँ ।

तभी तम्हारा जन्म

दिवस मनाएँ

सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँ

सच्ची भक्ति कर पाएँ ।

जय श्री कृष्ण

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