मेरे अनुभव को अपनी प्रतिक्रिया से सजाएँ

नव वर्ष

>> Monday, December 31, 2007


नव वर्ष की
स्नेहिल दस्तक
उर आनन्द जगाती है
बीत गया जो वर्ष पुराना
उसको राह बताती है
नव उल्लास समाता उर में
नव उमंग लहराती है

आँखों में हैं कितने सपने
जीवन को महकाने के
बीती बातों को विस्मृत कर
नव उत्साह जगाने के

गत अतीत की मीठी यादें
आँखों में लहराती हैं
खोया-पाया किसने क्या-क्या
फिर उनको दोहराती हैं

ले अतीत की सुन्दर यादें
भावी को चमकाएँ हम
स्वागत करें नव-आगन्तुक का
कलियाँ राह बिछाएँ हम

संकल्पों में दृढ़ता लाएँ
नव योजनाएँ जीवन में
पीड़ा -शोषण दूर भगा दें
स्व का लोभ भुलाएँ हम

नव वर्ष में नव-उम्मीदें
नव-संकल्प जगाएँ हम
आओ बन्धु नव वर्ष में
जीवन नया बनाएँ हम

Read more...

बीत रहा है जीवन पल-पल

>> Friday, December 28, 2007


बीत रहा है जीवन पल-पल
समय हाथ से छूट रहा
आने वाले से पहले ही
कोई पीछे छूट रहा

आए कितने वर्ष यहाँ पर
कुछ भी हाय नहीं किया
इतने वर्षों के जीवन में
कुछ भी हासिल नहीं हुआ

खाना-पीना मौज मनाना
इसको ही जीवन माना
पर-सेवा या पर पीड़ा को
नहीं कभी भी पहचाना

आएगा एक वर्ष और भी
जागेंगें कितने सपने
किन्तु भोग में डूबी आँखें
देखेंगीं अपने सपने

एक-एक पल शुष्क रेत सा
जीवन-घट से छूट रहा
फिर भी इस दुनिया से देखो
मोह बन्ध ना छूट रहा

जाता है जीवन से कोई
कोई दौड़ा आता है
आने-जाने के इस क्रम में
जीव भ्रमित हो जाता है

लगता है कल सुख आएगा
स्वप्न पूर्ण हो जाएगा
मृगतृष्णा में भटका मानव
जाने कब सुख पाएगा ?
आओ अब कुछ ऐसा सोचें
चिर आनन्द को पा जाएँ
स्व से हटकर पर की सोचें
जीवन सफल बना जाएँ

Read more...

कवि तुम पागल हो--?

>> Saturday, December 8, 2007


कवि तुम पागल हो--?

सड़क पर जाते हुए जब
भूखा नंगा दिख जाता है
हर समझदार आदमी
बचकर निकल जाता है
किसी के चेहरे पर भी
कोई भाव नहीं आता है
और तुम---?
आँखों में आँसू ले आते हो
जैसे पाप धोने को
आया गंगाजल हो--
कवि तुम पागल हो ---?

जीवन की दौड़ में
दौड़ते-भागते लोगों में
जब कोई गिर जाता है
उसे कोई नहीं उठाता है
जीतने वाले के गले में
विजय हार पड़ जाता है
हर देखने वाला
तालियाँ बजाता है
पर-- तुम्हारी आँखों में
गिरा हुआ ही ठहर जाता है --
जैसे कोई बादल हो--
कवि-- तुम पागल हो--?

मेहनत करने वाला
जी-जान लगाता है
किन्तु बेईमान और चोर
आगे निकल जाता है
और बुद्धिजीवी वर्ग
पूरा सम्मान जताता है।
अपने-अपने सम्बन्ध बनाता है
पर तुम्हारी आँखों में
तिरस्कार उतर आता है
जैसे- वो कोई कातिल हो
कवि? तुम पागल हो --

सीधा-सच्चा प्रेमी
प्यार में मिट जाता है
झूठे वादे करने वाला
बाजी ले जाता है
सच्चा प्रेमी आँसू बहाता है
तब किसी को भी कुछ
ग़लत नज़र नहीं आता है
पर--तुम्हारी आँखों में
खून उतर आता है
उनका क्या कर लोगे
जिनका दिल दल-दल हो
कवि तुम पागल हो

धर्म और नैतिकता की
बड़ी-बड़ी बातें करने वाला
धर्म को धोखे की दुकान बनाता है
तब चिन्तन शील समाज
सादर शीष नवाता है
सहज़ में ही--
सब कुछ पचा जाता है
और तुम्हारे भीतर
एक उबाल सा आजाता है
लगता है तुमको क्यों
चर्चा ये हर पल हो ?
कवि तुम पागल हो --?

Read more...

  © Blogger template Shiny by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP